भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा साल में सिर्फ एक बार मंदिर से बाहर निकलते हैं. यही रथ यात्रा है.

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भगवान जगन्नाथ को जगत का नाथ कहा जाता है. स्कंद पुराण व ब्रह्म पुराण में इन्हें 'महाप्रभु' और 'पुरुषोत्तम' कहा गया है.

स्कंद पुराण के अनुसार, जो मूर्ति दिखती है वह केवल लकड़ी की नहीं, बल्कि परमब्रह्म का स्वरूप है. 

माना जाता है कि, भगवान जगन्नाथ मूल रूप से एक आदिवासी देवता थे. सबर जाति के राजा विश्ववसु उन्हें नील माधव के रूप में पूजते थे.

4 वेदों में वर्णन है कि भगवान 'दारु' (लकड़ी) के रूप में प्रकट होते हैं. इसीलिए जगन्नाथ की मूर्ति विशेष पवित्र लकड़ी से बनती है.

रथ यात्रा में तीनों देवता विशाल रथ में बैठकर भ्रमण करते हैं. लाखों श्रद्धालु इस यात्रा में आते हैं.

आपको बता दें कि, पुरी का श्रीजगन्नाथ मंदिर 12वीं सदी में अनंतवर्मा चोडगंग देव द्वारा बनवाया गया था.

जगन्नाथ रथ यात्रा अब न केवल ओडिशा या भारत में, बल्कि दुनिया के कई देशों में भी मनाई जाती है.

Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी केवल सामान्य ज्ञान पर आधारित है.

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