प्रेमानंद महाराज का कहना है कि अगर मन से शादी का भाव न हो तो इसे टालना बेहतर है.

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किसी के दबाव या समाजिक मजबूरी के चलते शादी करना उचित नहीं है.

विवाह के बाद साथी की भी अपनी इच्छाएं और अपेक्षाएं होती हैं, जिन्हें पूरा न कर पाने से रिश्ते बिगड़ सकते हैं.

बिना इच्छा के शादी करने से न केवल खुद बल्कि साथी का जीवन भी प्रभावित होता है.

अगर जीवनभर ब्रह्मचर्य पालन करना चाहते हैं, तो यह बात शुरुआत में ही घरवालों को बता दें.

शादी का मतलब है साझेदारी, किसी को नियंत्रण में रखकर जीना रिश्ते को कमजोर करता है.

यह केवल दो लोगों का नहीं, बल्कि परिवारों का मिलन है, इसलिए इसमें सोच-समझकर कदम रखें.

अपने इरादों और इच्छाओं को स्पष्ट रूप से बताने से अनावश्यक विवाद और दुख से बचा जा सकता है.

Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी केवल सामान्य ज्ञान पर आधारित है.

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