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खासकर विदेशी नस्लें, जो ज्यादा दूध और तेज वजन बढ़ाकर किसानों की आमदनी कई गुना बढ़ा देती हैं.
बकरी पालन आज छोटे किसानों के लिए बेहतरीन विकल्प बन गया है, क्योंकि इसमें जमीन कम लगती है.
भारतीय किसान अब विदेशी नस्लों को इसलिए पसंद कर रहे हैं क्योंकि ये देसी बकरियों से दोगुना दूध देती हैं
एंग्लो नूबियन रोज 4.5–5 लीटर तक दूध देती है, जो एक देसी गाय के बराबर होता है. इसका दूध गाढ़ा होता है.
एंग्लो नूबियन का शांत स्वभाव और भारतीय गर्मी में खुद को ढालने की क्षमता इसे किसानों के लिए सबसे उपयुक्त बनाती है.
स्विट्जरलैंड की सानेन नस्ल रोज 3.5–4 लीटर दूध देती है. इसका दूध हल्का और आसानी से पचने वाला होता है.
सानेन नस्ल 9 महीने में ही प्रजनन के लिए तैयार हो जाती है, जिससे किसान कम समय में बकरियों का झुंड बना सकते हैं.
टोगेनबर्ग का भूरा-सफेद रंग, सुंदर चेहरा और बिना सींग का लुक इसे खास बनाते हैं. यह रोज 4–4.5 लीटर दूध देती है.
Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी केवल सामान्य ज्ञान पर आधारित है.