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इस त्योहार का सबसे खास हिस्सा रावण का पुतला जलाना है, जिसमें लोग बुराई का प्रतीक मानकर जलाते हैं.
रावण के पुतले जलाने की परंपरा भारत में आजादी के बाद, 1948 के बाद शुरू हुई.
1948 में रांची शहर में पहली बार रावण का छोटा पुतला जलाया गया, जिससे यह परंपरा लोगों के बीच लोकप्रिय होने लगी.
इस परंपरा को पाकिस्तान से आए शरणार्थियों ने शुरू किया था, जिन्होंने घर में अच्छाई की जीत का प्रतीक स्थापित किया.
शुरुआत में सिर्फ छोटे पुतले जलाए जाते थे, लेकिन धीरे-धीरे यह परंपरा पूरे भारत में फैल गई.
देश की राजधानी दिल्ली के रामलीला मैदान में 17 अक्टूबर 1953 को सबसे पहले रावण का पुतला जलाया गया.
उस समय लकड़ी या कागज के बजाय रावण का पुतला कपड़े से बनाया गया था.
Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी केवल सामान्य ज्ञान पर आधारित है.