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संक्रमित पक्षी का मल, दूषित पानी, दाना, हवा या बर्तन वायरस फैलाने का जरिया बन सकते हैं.
गर्दन टेढ़ी होना, हांफना, खांसी, पतला हरा-सफेद दस्त और लकवा इस बीमारी के शुरुआती लक्षण हैं.
एफ स्ट्रेन, लासोटा और आर-2-बी जैसी वैक्सीन सही उम्र में देना बेहद जरूरी है. यह रोग का इलाज नहीं, पर सुरक्षा जरूर है.
5-7 दिन की उम्र में पहली डोज, फिर 8-9 हफ्ते और 16-18 हफ्ते पर बूस्टर डोज जरूरी है. यही रूटीन फार्म को बचा सकता है.
दाने और पानी के बर्तनों को रोजाना साफ करें. गंदगी ही सबसे बड़ा संक्रमण का ज़रिया बनती है.
नए पक्षियों को बाकी मुर्गियों से तुरंत न मिलाएं. पहले 7-10 दिन अलग रखें और उनकी सेहत पर निगरानी रखें.
फार्म की नियमित मॉनिटरिंग से बीमारी की जल्दी पहचान होती है. किसी भी असामान्यता पर तुरंत एक्शन लें.
Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी केवल सामान्य ज्ञान पर आधारित है.