मिल्क फीवर नाम के बावजूद इसमें बुखार नहीं होता, बल्कि पशु का शरीर ठंडा पड़ जाता है और मांसपेशियां कमजोर होने लगती हैं.

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ब्यांत के बाद दूध उत्पादन के लिए अधिक कैल्शियम की जरूरत होती है. अगर यह पूरी नहीं होती तो मिल्क फीवर हो सकता है.

पशु बार-बार गर्दन मोड़कर पेट की ओर ले जाता है, अचानक बैठ जाता है और उठ नहीं पाता. आंखों की चमक भी कम हो जाती है.

फीवर के दौरान पशु को सांस लेने में कठिनाई होती है और मांसपेशियों में कंपन आने लगता है.

गर्भावस्था के दौरान पशु को कैल्शियम, फॉस्फोरस और मिनरल मिक्चर दें. अचानक कंसेन्ट्रेट चारा बंद न करें.

पशु को रोजाना कुछ घंटे धूप में रखें ताकि शरीर में प्राकृतिक रूप से कैल्शियम अवशोषण बेहतर हो सके.

इलाज में कैल्शियम बोरोग्लूकोनेट नाम की दवा दी जाती है. नस में और स्किन के नीचे आधा-आधा इंजेक्शन देकर राहत मिलती है.

थन में सूजन, दर्द और दूध में बदबू या खून, ये थनैला के लक्षण हैं. साफ-सफाई इससे बचाव किया जा सकता है.

Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी केवल सामान्य ज्ञान पर आधारित है.

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