ग्रामीण क्षेत्रों में देसी मुर्गा पालन रोजगार और मुनाफे का नया जरिया बनता जा रहा है. 

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कम निवेश में ज्यादा लाभ, स्वास्थ्यवर्धक मांस और अंडे, युवाओं और महिलाओं के लिए अवसर.

कड़कनाथ और असिल जैसी देसी मुर्गियों का मांस और अंडे दोनों की बाजार में भारी डिमांड है.

असिल और लेयर नस्ल साल में 250–300 अंडे देती हैं, जबकि कड़कनाथ और सामान्य देसी 150–200 अंडे देती हैं.

कड़कनाथ का काला मांस स्वादिष्ट और सेहतमंद होने के कारण 800–1000 रुपये प्रति किलो बिकता है.

देसी मुर्गियों के अंडे सामान्य अंडों से महंगे बिकते हैं, एक अंडा 15–20 रुपये में आसानी से बिकता है.

सिर्फ 50–100 चूजों से भी व्यवसाय शुरू किया जा सकता है, शेड और देखभाल पर ज्यादा खर्च नहीं.

देसी नस्लें रोगों से लड़ने में मजबूत होती हैं, जिससे कम दवाई और टीकाकरण की जरूरत पड़ती है.

घर का बचा-खुचा खाना, चावल और अनाज दे कर मुर्गियों का पालन किया जा सकता है, जिससे खर्च घटता है.

Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी केवल सामान्य ज्ञान पर आधारित है.

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