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उन्होंने कहा कि जैसे बच्चे को उसके पिता का नाम मां बताती है, वैसे ही भगवान का प्रमाण सद्गुरु देते हैं, कोई और नहीं.
प्रेमानंद जी के अनुसार, जो व्यक्ति भौतिक सुखों में लिप्त है, वह भगवान के अस्तित्व को अनुभव नहीं कर सकता.
महाराज जी ने समझाया कि जब ये प्रकृति है, तो कोई रचनाकार भी होगा ही. जैसे पुत्र है तो कोई पिता भी होगा.
उन्होंने कहा कि प्रश्नों के उत्तर तभी मिलते हैं जब हम साधना करें—जैसे बताई गई संख्या में नामजप, संयम और ध्यान.
उनके अनुसार, पवित्र आहार लेना, अधार्मिक व्यवहार त्यागना और शुद्ध जीवन जीना भगवान के अनुभव की पहली शर्त है.
महाराज जी का मानना है कि साधना ज़रूरी है लेकिन भगवान का अनुभव अंततः उनकी कृपा से ही संभव होता है.
अंत में उन्होंने कहा कि जब अनुभव होगा तब खुद-ब-खुद समझ आ जाएगा कि भगवान हैं.
Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी केवल सामान्य ज्ञान पर आधारित है.