प्रेमानंद जी महाराज के अनुसार सच्चा प्यार वह है जिसमें 'मैं' और 'मेरा' नहीं होता, केवल 'हम' का भाव होता है. 

PC: Canva

प्यार में त्याग अनिवार्य है. इसमें स्वार्थ के लिए नहीं बल्कि दूसरे की भलाई के लिए कार्य करना होता है.

सच्चा प्यार एक-दूसरे की खुशियों और संतोष को प्राथमिकता देता है, जैसे हम ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए भोग चढ़ाते हैं.

शादी और रिश्तों में प्यार तभी टिकता है जब दोनों का विचार और उद्देश्य समान हो. असहमति प्यार को कमजोर कर सकती है.

प्यार केवल लेना नहीं, बल्कि देना और समर्पित सेवा करना भी है. यही निस्वार्थता प्यार की असली पहचान है.

रिश्तों में दूसरों की अच्छाइयों पर ध्यान दें, उनकी कमियों की बजाय. यह दृष्टिकोण प्यार को लंबे समय तक जीवित रखता है.

घमंड और अभिमान सच्चे प्यार की राह में बाधा हैं. प्यार में आपको खुद को भूलकर साथी के लिए जीना होता है.

सच्चा प्यार केवल शब्दों में नहीं, बल्कि भाव, समझ और कर्मों से व्यक्त होता है. 

Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी केवल सामान्य ज्ञान पर आधारित है.

Next: क्या जबरदस्ती की गई शादी सही है? प्रेमानंद महाराज से जानें