महाराज जी कहते हैं, सबसे पहले यह मानो कि हर जीव में भगवान का वास है. यह सोच आत्मिक दृष्टि विकसित करती है.

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यदि कोई व्यक्ति व्यवहार में धोखेबाज निकले, तो उसे छोड़ देना चाहिए. लेकिन परमात्मा की उपस्थिति उसमें भी स्वीकार करें.

चाहे व्यक्ति कितना भी नीच, पापी या क्रूर क्यों न हो. उसमें भी राधा वल्लभ लाल विराजमान हैं.

जैसे बिजली हीटर, कूलर, फ्रिज हर जगह एक ही होती है, वैसे ही हर व्यक्ति में ईश्वर रूपी ऊर्जा है. भले ही कार्य अलग हों.

महाराज कहते हैं कि परमात्मा रूपी शक्ति सबमें एक है, लेकिन हर मनुष्य की मानसिकता उसके कार्य को निर्धारित करती है.

यदि किसी व्यक्ति की सोच राक्षसी है, तो वही परमात्मा उसमें राक्षसी रूप में प्रकट होते हैं. दोष परमात्मा का नहीं, मन का है.

हमें किसी के व्यवहार से नहीं, सत्य की खोज करनी चाहिए और वह सत्य है परमात्मा.

जिसका व्यवहार हमारे मन को शांति दे, उसे अपना मित्र बनाएं. अन्यथा उससे दूरी बना लेना ही सही है.

Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी केवल सामान्य ज्ञान पर आधारित है.

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