स्प्रिंकलर इरीगेशन यानी सिंचाई का ऐसा तरीका जो पूरे खेत में एक बार में पानी छिड़क देता है. इसके बारे में जब सोचा गया तो शुरुआत में इसे घर के लॉन की देखभाल और बगीचे में पानी के इस्तेमाल के लिए किया गया था. इसे आप स्प्रे सिंचाई से प्रेरित विधि भी कह सकते हैं. घर के गार्डन के लिए ईजाद की गई यह टेक्नोलॉजी आज कृषि में सबसे लोकप्रिय सिंचाई प्रणालियों में से एक हो गई है. किसानों ने भी सिंचाई के लिए हाई प्रेशर वाले पानी के सिस्टम से होने वाले फायदों को पहचाना और इसे तेजी से अपनाया.
क्या है स्प्रिंकलर सिंचाई सिस्टम
स्प्रिंकलर सिंचाई, खेतों को या गार्डन में लगे पेड़ों को सींचने की एक ऐसी विधि है जो बिल्कुल बारिश के जैसा प्रभाव देती है. पानी को आमतौर पर पंपिंग द्वारा पाइप की एक सिस्टम के जरिये से वितरित किया जाता है. फिर इसे हवा में छिड़का जाता है और पूरी मिट्टी की सतह को स्प्रे हेड की मदद से सिंचित किया जाता है. इससे यह जमीन पर गिरने वाली छोटी पानी की बूंदों में टूट जाती है.
क्यों हैं यह सिस्टम फायदेमंद
स्प्रिंकलर छोटे से लेकर बड़े क्षेत्रों के लिए पानी को बेहतर तरीके से डिस्ट्रीब्यूट करता है और उसे एक बेहतर कवरेज देता है. साथ ही सभी तरह के खेतों पर प्रयोग के लिए उपयुक्त हैं. यह लगभग सभी प्रकार की सिंचाई योग्य मिट्टी के लिए भी अनुकूल है क्योंकि स्प्रिंकलर कई प्रकार की डिस्चार्ज क्षमताओं में मिलता है.
कम मेहनत में ज्यादा सिंचाई
स्प्रिंकलर सिंचाई का उपयोग आमतौर पर इसलिए किया जाता है क्योंकि यह लगभग सभी फसलों के लिए अनुकूल है. साथ ही साथ यह बहुत ही लागत प्रभावी और सस्ती सिंचाई विधि है. स्प्रिंकलर सिस्टम को बहुत ज्यादा मेहनत की जरूरत नहीं होती है. ऐसे में किसान इस इरीगेशन सिस्टम को अपनाने से पीछे नहीं हटते हैं. स्प्रिंकलर सिंचाई सिस्टम का प्रयोग बड़े क्षेत्र में पानी को समान रूप से वितरित करने की इसकी क्षमता के कारण किया जाता है, जो फसलों में स्वस्थ विकास का समर्थन करने में मदद करता है.
सिस्टम पर मिलती है सब्सिडी
भारत सरकार की तरफ से किसानों को स्प्रिंकलर सिंचाई सिस्टम के लिए सब्सिडी भी दी जाती है. यह सब्सिडी Per Drop More Crop (पीडीएमसी) योजना के तहत उपलब्ध है, जो प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) का हिस्सा है. सरकार छोटे और सीमांत किसानों के लिए 55 फीसदी और बाकी किसानों के लिए 45 फीसदी सब्सिडी देती है. सब्सिडी की गणना सांकेतिक इकाई लागत के आधार पर की जाती है. कुछ राज्य अतिरिक्त प्रोत्साहन या टॉप-अप सब्सिडी प्रदान करते हैं.