पहाड़ों में धान रोपाई की अनूठी परंपरा, ढोल की थाप और गीतों के साथ होती है फसल बुवाई

महिला किसान दीपा रावल बताती हैं कि, इन गीतों के बिना रोपाई अधूरी सी लगती है. उन्होंने बताया कि गीतों के साथ धान की रोपाई करने से किसानों को थकान नहीं लगती और उनके लिए काम एक त्यौहार जैसा हो जाता है.

नोएडा | Updated On: 9 Jul, 2025 | 06:50 PM

देवभूमि उत्तराखंड न सिर्फ अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है, बल्कि यहां की लोकसंस्कृति, लोकगीत, लोकगाथाएं और रीति-रिवाज भी इसे खास बनाते हैं. यहां की ऐसी ही एक परंपरा है जो कि धान रोपाई से जुड़ी हुई है. दरअसल, उत्तराखंड में धान की रोपाई केवल खेती से जुड़ा काम नहीं है बल्कि एक सामाजिक उत्सव है, जहां परंपरा, आस्था और सामूहिकता की झलक देखने को मिलती है. यहां के ग्रामीण इलाकों के लोग धान की रोपाई करने से पूहले भूमि देवता की पूजा-अर्चना कर ईश्वर से अच्छी फसल उत्पादन और पृथ्वी के हमेशा हरे-भरे बने रहने की कामना करते है. बता दें कि प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में आज भी कुछ महिलाएं हैं जो इस सांस्कृतिक परंपरा को बचाते हुए आगे बढ़ा रही हैं.

लोकगीतों के साथ होती है रोपाई

उत्तराखंड में धान की रोपाई से जुड़ी सांस्कृतिक परंपरा को बचाकर कुछ महिलाएं आज भी आगे बढ़ा रही हैं. धान की रोपाई से पहले जब किसान भूमि देवता से फसलों के अच्छे उत्पादन की कामना करते हैं, तब उसके बाद सभी महिलाएं मिलकर अपनी पारंपरिक लोकगाथाओं और लोकगीतों को गाकर रोपाई में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करती हैं. धान की रोपाई के साथ ही किसानों की ईश्वर से कामना रहती है कि उनके खेत हरे भरे रहें. बता दें कि पहाड़ी इलाकों में धान की रोपाई को उत्सव के रूप में मनाते हैं.

वाद्य यंत्रों के साथ शुरू होती हैं लोकगाथाएं

समाचार एजेंसी प्रसार भारती के अनुसार,धान की रोपाई के समय गाये जाने वाले लोकगीत स्थानीय लोकगाथाओं पर आधारित और देवी-देवताओं की ऐतिहासिक कथाओं से पिरोये हुए होते हैं. इन लोकगीतों को परंपरागत वाद्य यंत्र हुड़के की थाप के साथ गाया जाता है. प्रस्तुति के दौरान महिलाओं की चूड़ियों की खनक से ये लोकगीत और ज्यादा मनमोहक हो जाते हैं. बता दें कि लोकगीत गाने के दौरान, एक किसान वाद्य यंत्र हुड़का के साथ गाथाए शुरू करता है और अन्य किसान गीत के बोलों को दोहराते हैं. एक महिला किसान गीता रावल बताती हैं कि आज धान की रोपाई मोबाइल पर पहाड़ी गाने लगाकर होती है लेकिन असली महत्व तभी था जब परंपरागत गीतों को गाकर रोपाई की जाती थी.

उत्तराखंड में धान की रोपाई करती हुई महिलाएं

धान रोपाई की पारंपरिक विरासत आज भी जीवित

एक और महिला किसान दीपा रावल बताती हैं कि, इन गीतों के बिना रोपाई अधूरी सी लगती है. उन्होंने बताया कि गीतों के साथ धान की रोपाई करने से किसानों को थकान नहीं लगती और उनके लिए काम एक त्यौहार जैसा हो जाता है. बता दें कि, धान की रोपाई के समय हुडकिया बौल की पारंपरिक और सांस्कृतिक विरासत आज भी पहाड़ों में जिंदा है. बरसात में बागेश्वर जिले के अलग-अलग इलाकों में धान की रोपाई का काम जोर शोर से चल रहा है. उत्तराखंड में धान की रोपाई से न केवल अच्छा उत्पादन होता है बल्कि पारंपरिक सस्कृति को जीवित रखने में भी मदद मिलती है.

Published: 9 Jul, 2025 | 06:38 PM

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