देश के ग्रामीण इलाकों में बड़ी संख्या में किसान पशुपालन को आय का प्रमुख साधन बना चुके हैं. लेकिन इस क्षेत्र में सफल होने के लिए जरूरी है सही वैज्ञानिक जानकारी. खासकर तब, जब आप जानवर की खरीद, देखरेख और प्रजनन को लेकर निवेश कर रहे हों. गर्भकाल यानी गर्भवती होने के बाद बच्चे के जन्म तक के दिनों की सही जानकारी न सिर्फ व्यवसाय की योजना को मजबूत बनाती है, बल्कि समय पर टीकाकरण और देखभाल में भी मददगार साबित होती है.
गाय और भैंस के गर्भकाल में अंतर
गाय और भैंस दोनों ही कृषि में अहम भूमिका निभाती हैं, लेकिन इनके गर्भकाल में स्पष्ट अंतर होता है. एक्सपर्टों की माने तो गाय का गर्भकाल औसतन 281 दिन यानी लगभग 9 महीने का होता है, जबकि भैंस का गर्भकाल थोड़ा लंबा, करीब 310 दिन (10 महीने) तक होता है. यह फर्क प्रजनन चक्र और दूध उत्पादन क्षमता पर असर डाल सकता है. हालांकि, भैंसों में प्रजनन की देरी एक चुनौती हो सकती है, लेकिन अच्छे प्रबंधन, सही नस्ल और सही देखभाल से इसे नियंत्रित किया जा सकता है. उचित आहार, नियमित जांच और सही समय पर गर्भधारण से न सिर्फ प्रजनन दर में सुधार आता है, बल्कि उत्पादकता भी बढ़ती है.
भेड़ और बकरी के गर्भकाल में अंतर
पशु एक्सपर्टों के अनुसार भेड़ का करीब गर्भकाल 147 दिन यानी 5 महीने का होता है, जिससे उत्पादन चक्र तेज होता है और छोटे व्यवसायियों के लिए फायदेमंद साबित होता है. वहीं बकरी का गर्भकाल औसतन 151 दिन होता है, लेकिन इसमें निवेश कम और मुनाफा जल्दी होता है. इसी कारण, बकरी पालन को ग्रामीण क्षेत्रों में ‘गरीबों की गाय’ कहा जाता है, क्योंकि यह कम लागत में अच्छे लाभ की संभावना प्रदान करती है.
क्यों जरूरी है गर्भकाल की जानकारी?
पशुओं के गर्भकाल की जानकारी से किसान यह तय कर सकता है कि उसकी आय कितनी बार और कितने समय में आ सकती है. इसके अनुसार चारा, दवाइयों और शेड की व्यवस्था की जा सकती है. इसके साथ ही यह जानकारी टीकाकरण, प्रसव पूर्व देखभाल, ब्रीडिंग प्लान, दुग्ध उत्पादन की योजना, खर्च का अनुमान, लाभ गणना और बाजार आपूर्ति को समझने में भी उपयोगी है.