भेड़ों का झुंड बंजर खेत को बना देगा उपजाऊ, बस करना होगा ये काम

अगर आपका खेत बंजर हो गया है या मिट्टी की उर्वरा शक्ति कमजोर हो रही है तो भेड़ों का झुंड इस समस्या को दूर करने में मददगार हो सकता है. आइये समझते हैं कि किसान कैसे अपने खेत को उपजाऊ बना सकते हैं.

भेड़ों का झुंड बंजर खेत को बना देगा उपजाऊ, बस करना होगा ये काम
Noida | Updated On: 4 Apr, 2025 | 12:11 PM

खेती में आधुनिक तरीकों के साथ पारंपरिक ज्ञान का उपयोग करने से बेहतर परिणाम मिल रहे हैं. देखा जाए तो पिछले कुझ सालों में किसानों ने भेड़ों को खेत में बैठाने की पुरानी परंपरा को फिर से अपनाना शुरू किया है. उनका यह तरीका मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के साथ-साथ लागत कम करने में भी कारगर साबित हो रहा है. इस तकनीकी से बिना किसी रासायनिक खाद के खेतों की उपज बढ़ रही है और किसानों को इसका सीधा फायदा मिल रहा है.

कैसे बढ़ेगी खेतों की उर्वरा शक्ति

इसमें होता ये है कि किसान अपने खेतों में रात के समय भेड़ों के झुंड को बैठाते हैं.  ऐसा करने से भेड़ों का मल और मूत्र मिट्टी में मिल जाते हैं. गोबर में ऐसे तत्व पाए जाते हैं जो खाद का काम करते हैं और खरपतवार, दीमक के साथ फसल को नुकसान करने वाले कीटों भी खत्म हो जाते हैं. इससे खेत की मिट्टी में सुधार होता है और उर्वरा शक्ति बढ़ जाती है. इस प्रक्रिया से फसलों को प्राकृतिक पोषण मिलता है और किसानों को रासायनिक खादों पर निर्भर नहीं रहना पड़ता. महत्वपूर्ण बात ये है कि एक बार इस तकनीक को अपनाने से दो साल तक खेत उपजाऊ बना रहता है.

भेड़ पालन से रोजगार के नए अवसर

इस तकनीक से न केवल किसान बल्कि भेड़ पालकों को भी लाभ हो रहा है. इससे पहले भेड़ पालकों को अपने जानवरों को चराने के लिए संघर्ष करना पड़ता था, लेकिन अब किसानों की बढ़ती मांग के कारण उन्हें अच्छी आमदनी होने लगी है. इस तकनीकी से भेड़ पालकों को फायदा ये मिला कि उनकी तीन से चार सौ रुपये प्रति बीघा के हिसाब से कमाई कर हो जाती है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है. इससे किसान का काम आसान हो जाता है और भेड़ पालकों का भी खर्चा पानी आराम से चल जाता है.

खेती में कम खर्च, ज्यादा मुनाफा

इस विधि के अपनाने से किसानों का खर्च कम होता है और मिट्टी की उर्वरता लंबे समय तक बनी रहती है. वहीं भेड़ों की गाद (मल)  प्राकृतिक खाद का काम करती है, जिससे पैदावार में बढ़ोतरी होती है. इससे किसानों को रासायनिक खादों पर पैसा खर्च नहीं करना पड़ता और कीटनाशकों की आवश्यकता भी कम हो जाती है.

Published: 4 Apr, 2025 | 12:50 PM

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