देश के किसान करेंगे हल की पूजा, जानें क्यों आज खेतों में नहीं होता काम?

गांवों में किसानों का मानना है कि बलराम जी की कृपा से ही खेतों में हरी-भरी फसल लहराती है, समय पर बारिश होती है और अनाज की भरपूर पैदावार मिलती है.

नई दिल्ली | Published: 14 Aug, 2025 | 09:22 AM

भारत की ग्रामीण संस्कृति में कई त्योहार ऐसे होते हैं जो सिर्फ धार्मिक आस्था तक सीमित नहीं रहते, बल्कि लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी और आजीविका से भी गहराई से जुड़े होते हैं. हलछठ, जिसे बलराम जयंती या ललही छठ के नाम से भी जाना जाता है, ऐसा ही एक विशेष पर्व है. यह भगवान कृष्ण के बड़े भाई और किसानों के संरक्षक माने जाने वाले बलराम जी के जन्मोत्सव के रूप में भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है, जो जन्माष्टमी से दो दिन पहले आती है.

बलराम किसानों के देवता

बलराम जी को प्यार सेहलधरकहा जाता है, जिसका मतलब है हल पकड़ने वाले या हल का उपयोग करने वाले. हल, खेती का सबसे पुराना और अहम औजार है, इसलिए बलराम जी को कृषि, धरती और अन्न का प्रतीक माना जाता है.

गांवों में किसानों का मानना है कि बलराम जी की कृपा से ही खेतों में हरी-भरी फसल लहराती है, समय पर बारिश होती है और अनाज की भरपूर पैदावार मिलती है. यही वजह है कि हलछठ के दिन किसान खेतों में हल नहीं चलाते और किसी भी तरह का कृषि कार्य नहीं करते. इस दिन को वे खेती के लिए विश्राम और आभार का दिन मानते हैं.

इस मौके पर किसान अपने खेतों और फसलों की सलामती के लिए बलराम जी से प्रार्थना करते हैं और मानते हैं कि उनकी कृपा से खेत-खलिहान हमेशा समृद्ध रहेंगे.

किसानों के लिए आस्था और उम्मीद का दिन

यह दिन किसानों के लिए सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि भावनात्मक महत्व भी रखता है. बारिश के मौसम में, जब फसलें खेतों में बढ़ रही होती हैं, किसान अपने खेतों और अनाज को बलराम जी को समर्पित कर उनकी रक्षा की प्रार्थना करते हैं. बुजुर्ग किसानों का मानना है कि बलराम जी के आशीर्वाद से कीट-पतंगों, सूखा और बेमौसम बारिश जैसी प्राकृतिक विपदाओं से फसल सुरक्षित रहती है.

व्रत का महत्व और परंपरा

हलछठ का व्रत मुख्य रूप से महिलाएं अपनी संतान की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और स्वास्थ्य के लिए रखती हैं. व्रत में हल से जोते गए अनाज का उपयोग नहीं किया जाता. इसके स्थान पर पसई या तिन्नी का चावल, भैंस के दूध से बनी दही और शुद्ध घी का सेवन किया जाता है. ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं सूर्योदय से पहले स्नान कर पूजा की तैयारी करती हैं और बलराम जी की मूर्ति या चित्र के सामने दीप जलाकर अर्चना करती हैं.

मेल-जोल और सामाजिक एकता

गांवों में हलछठ के दिन महिलाएं एक-दूसरे के घर जाकर प्रसाद बांटती हैं और बच्चों के लिए आशीर्वाद मांगती हैं. यह पर्व ग्रामीण समाज में एकता और आपसी सहयोग की भावना को मजबूत करता है. कई जगह इस दिन सामूहिक भजन-कीर्तन और लोकगीतों का आयोजन भी होता है, जिसमें कृषि जीवन और बलराम जी के पराक्रम का वर्णन किया जाता है.

किसानों की आस्था से जुड़ा त्योहार

हलछठ एक ऐसा पर्व है जो धरती, अन्न और श्रम के सम्मान का प्रतीक है. यह किसानों के लिए बलराम जी के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का अवसर है, और यह विश्वास दिलाता है कि मेहनत और आस्था से हर खेत सुनहरा होगा और हर अन्नदान से घर-आंगन खुशियों से भर जाएगा.

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