Bihar Chunav 2025: कभी अपने गांव के छोटे से मंच पर लोकगीत गाने वाली मिथिला की बेटी, मैथिली ठाकुर अब राजनीति के मैदान में कदम रख चुकी हैं. जिस आवाज ने पूरे भारत के दिलों को छुआ, वही आवाज अब बिहार की जनता की आवाज बनने जा रही है. सोशल मीडिया से लेकर संगीत के हर मंच तक अपनी पहचान बना चुकी मैथिली अब विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार के तौर पर मैदान में हैं. बचपन से संगीत साधना में डूबी यह लड़की आज उस मुकाम पर है जहां लोग उन्हें सिर्फ गायिका नहीं, बल्कि प्रेरणा मानते हैं. सुरों की दुनिया से निकलकर राजनीति में उनका आना, कई युवाओं के लिए नया रास्ता खोल सकता है.
सीट, पार्टी और टिकट: मिथिला की बेटी की नई पारी
मैथिली ठाकुर ने 14 अक्टूबर 2025 को भारतीय जनता पार्टी (BJP) का दामन थामा. इसके तुरंत बाद पार्टी ने उन्हें बिहार विधानसभा चुनाव में दरभंगा जिले की अलीनगर सीट से उम्मीदवार बनाया. मिथिलांचल की धरती से आने वाली मैथिली के लिए यह फैसला बेहद अहम है, क्योंकि यह वही इलाका है जिसने उन्हें पहचान दी. बीजेपी ने युवाओं, महिलाओं और संस्कृति से जुड़े चेहरों को आगे लाने की रणनीति बनाई है और मैथिली ठाकुर इस सोच का सबसे चमकदार उदाहरण हैं. उनका नाम आते ही लोगों में जो उत्साह देखा गया, वह बताता है कि जनता उन्हें सिर्फ कलाकार नहीं बल्कि उम्मीद की किरण के रूप में देख रही है.

अलीनगर सीट से BJP उम्मीदवार मैथिली ठाकुर (Photo Credit: Canva)
गायिका से नेता बनने की राह- एक नए अध्याय की शुरुआत
मैथिली ठाकुर का सफर सिर्फ संगीत तक सीमित नहीं रहा. बचपन से ही शास्त्रीय संगीत की साधना करने वाली मैथिली ने जब सोशल मीडिया पर लोकगीत और भजन गाने शुरू किए, तो लाखों लोगों ने उन्हें अपनाया. उनकी आवाज में जो मिठास और सादगी है, उसने हर वर्ग को जोड़ दिया. अब वही सादगी और लोकप्रियता उन्हें राजनीति के मंच तक लाई है. बीजेपी के लिए मैथिली एक ऐसा चेहरा हैं जो संस्कृति, परंपरा और आधुनिकता-तीनों का संतुलन बनाए रखती हैं. उनके राजनीति में आने से यह उम्मीद की जा रही है कि वो युवाओं और ग्रामीण महिलाओं की आवाज बनेंगी.

मैथिली ठाकुर भाजपा उम्मीदवार (Photo Credit: Canva)
पढ़ाई-लिखाई और पारिवारिक पृष्ठभूमि
मैथिली ठाकुर का जन्म मधुबनी जिले के बेनीपट्टी गांव में हुआ था. उनके पिता रमेश ठाकुर खुद संगीत के जानकार हैं और वही उनके पहले गुरु भी रहे. मैथिली ने दिल्ली में रहकर पढ़ाई के साथ-साथ संगीत की शिक्षा ली. तीन भाई-बहनों में सबसे बड़ी मैथिली के छोटे भाई रिषभ और अयाची भी संगीत में ही आगे बढ़ रहे हैं. परिवार के सहयोग और कठोर साधना के बल पर मैथिली ने वो पहचान बनाई, जो अब उन्हें राजनीति की नई मंजिल तक ले जा रही है. उनके पिता अक्सर कहते हैं – मैथिली का सुर ही उसका संस्कार है. शायद यही वजह है कि अब वो राजनीति में भी संस्कार और सादगी का मेल लेकर आई हैं.
सम्मान, उपलब्धियां और पहचान
मैथिली ठाकुर को उनकी गायिकी के लिए कई सम्मान मिल चुके हैं. भारत सरकार ने उन्हें उस्ताद बिस्मिल्लाह खान युवा पुरस्कार से नवाजा है, वहीं निर्वाचन आयोग (Election Commission) ने उन्हें बिहार का स्टेट आइकन घोषित किया था. यूट्यूब और फेसबुक पर उनके वीडियो करोड़ों बार देखे जाते हैं. लालन गीत, भक्ति भजन और लोकसंगीत को आधुनिक संगीत से जोड़ने की उनकी शैली ने उन्हें अलग पहचान दी है. वो भारत की सांस्कृतिक विरासत को डिजिटल दुनिया से जोड़ने वाली सबसे प्रमुख आवाजों में से एक हैं. राजनीति में उनका प्रवेश इसी सांस्कृतिक जुड़ाव को और आगे बढ़ाने का कदम माना जा रहा है.

मैथिली ठाकुर का राजनीतिक सफर (Photo Credit: Canva)
सोशल मीडिया और जनता से गहरा जुड़ाव
आज के समय में मैथिली ठाकुर सिर्फ कलाकार नहीं, बल्कि एक डिजिटल आइकन हैं. उनके यूट्यूब चैनल पर 6 मिलियन से अधिक सब्सक्राइबर हैं और इंस्टाग्राम पर लाखों लोग उन्हें फॉलो करते हैं. उनकी पोस्ट पर लोग न सिर्फ संगीत सुनते हैं, बल्कि अपने जीवन से जुड़ी प्रेरणा भी पाते हैं. चुनाव प्रचार में पार्टी अब उनके इसी डिजिटल प्रभाव का इस्तेमाल कर रही है. मिथिलांचल के गांव-गांव में लोग कहते हैं- हमारा वोट उस बेटी को जाएगा, जिसने हमारी मिट्टी की आवाज दुनिया तक पहुंचाई. यह लोकप्रियता राजनीति में उनके लिए सबसे बड़ा हथियार साबित हो सकती है.