बंपर पैदावार के बीच कश्मीर की बादाम खेती पर संकट, घट रही है खेती योग्य जमीन

कश्मीर के बादाम किसानों की एक बड़ी समस्या है बाजार की व्यवस्था का अभाव. उनके पास अपनी मेहनत की फसल को बेचने के लिए कोई उचित और केंद्रीय मंडी नहीं है. ऐसे में उन्हें मजबूरीवश बिचौलियों के हाथों अपनी उपज औने-पौने दामों पर बेचनी पड़ती है.

नई दिल्ली | Published: 7 Aug, 2025 | 10:20 AM

इस साल कश्मीर घाटी में बादाम की बंपर पैदावार ने किसानों के चेहरे पर मुस्कान ला दी है. खासतौर पर पुलवामा और बडगाम जैसे जिलों में किसान मेहनत का अच्छा फल मिलने से खुश हैं. लेकिन इस मीठे फल की मिठास के पीछे एक कड़वा सच भी छिपा है, बादाम की खेती के लिए जमीन लगातार सिमटती जा रही है. शहरीकरण, फसल चक्र में बदलाव और बाजार की नई मांगों ने परंपरागत बादाम बागानों को धीरे-धीरे पीछे धकेल दिया है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या कश्मीर का यह ऐतिहासिक और खास ड्राई फ्रूट भविष्य में भी अपनी पहचान बचा पाएगा?

जमीन तो मिल रही है, लेकिन मकानों के लिए

बिजनेस लाइन की खबर के अनुसार, कई किसान बताते हैं कि जिस जमीन पर कभी बादाम के बाग लहलहाते थे, अब वहां घर और दुकानें बन रही हैं. खेतों और बागों की जगह धीरे-धीरे कंक्रीट की दीवारें ले रही हैं. इसके अलावा, कई किसान अब ज्यादा मुनाफा देने वाली सेब की खेती की ओर मुड़ चुके हैं.

पुलवामा के बादाम किसान अल्ताफ अहमद कहते हैं, “इस बार फसल बहुत अच्छी रही, लेकिन जमीन कम होती जा रही है. अगर यही हाल रहा तो अगले कुछ सालों में बादाम की खेती बचाना मुश्किल हो जाएगा.”

आंकड़े भी दिखा रहे गिरावट

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2006–07 में कश्मीर में 16,374 हेक्टेयर क्षेत्रफल में बादाम की खेती होती थी, जो 2019–20 तक घटकर सिर्फ 4,177 हेक्टेयर रह गई. इतना ही नहीं, उत्पादन भी घटा है जो 15,183 टन से घटकर 9,898 टन रह गया है ,और यह तब है जब जम्मू-कश्मीर भारत के 90 फीसदी बादाम उत्पादन के लिए जिम्मेदार है.

मंडी नहीं, मजबूरी है

कश्मीर के बादाम किसानों की एक बड़ी समस्या है बाजार की व्यवस्था का अभाव. उनके पास अपनी मेहनत की फसल को बेचने के लिए कोई उचित और केंद्रीय मंडी नहीं है. ऐसे में उन्हें मजबूरीवश बिचौलियों के हाथों अपनी उपज औने-पौने दामों पर बेचनी पड़ती है.

बडगाम के किसान अब्दुल मजीद का दर्द भी कुछ ऐसा ही है. वे कहते हैं, “हम दिन-रात मेहनत करते हैं, लेकिन फायदा किसी और को होता है. अगर सरकार या किसी एजेंसी की तरफ से एक व्यवस्थित बादाम मंडी होती, तो हमें भी हमारी मेहनत की सही कीमत मिलती.”

हाई-डेंसिटी किस्मों की मांग

कश्मीर में बादाम की खेती को नया मोड़ देने की तैयारी शुरू हो चुकी है. अब किसान पारंपरिक तरीकों की जगह हाई-डेंसिटी यानी घनी खेती की तकनीक अपनाने की मांग कर रहे हैं, जिसमें पेड़ एक-दूसरे के करीब लगाए जाते हैं, ताकि कम जमीन में अधिक उत्पादन हो सके. बडगाम जिले के कई किसानों का मानना है कि अगर पुराने पेड़ों की जगह नई हाई-डेंसिटी किस्में लगाई जाएं, तो बादाम का उत्पादन कई गुना बढ़ सकता है. इस दिशा में बागवानी विभाग भी सक्रिय है.

विभाग के निदेशक विकास आनंद ने जानकारी दी कि जल्द ही विभाग खुद का एक हाई-डेंसिटी मॉडल बाग विकसित करेगा, जिससे किसानों को तकनीकी मार्गदर्शन मिलेगा और नई संभावनाएं खुलेंगी.

अब क्या जरूरी है?

बडगाम जैसे इलाकों में बादाम की खेती को फिर से संजीवनी देने के लिए कुछ अहम कदम उठाना बेहद जरूरी है. सबसे पहले, बागों की अंधाधुंध कटाई पर सख्त नियंत्रण होना चाहिए, ताकि पारंपरिक खेती बची रह सके. साथ ही, किसानों को उनकी उपज का उचित दाम दिलाने के लिए एक केंद्रीय मंडी या सहकारी समितियों की स्थापना की जाए, जिससे उन्हें बिचौलियों पर निर्भर न रहना पड़े.

इसके अलावा, कम जमीन में अधिक उत्पादन के लिए हाई-डेंसिटी बादाम खेती जैसी नई तकनीकों को जमीनी स्तर पर पहुंचाना होगा, ताकि युवा किसान भी इस परंपरा से जुड़ सकें और खेती को एक फायदे का सौदा मानें.

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