Goat Farming : भारत में बकरे के मीट (Goat Meat) की मांग लगातार बढ़ रही है. अब यह सिर्फ त्योहारों तक सीमित नहीं रह गई है, बल्कि आम दिनों में भी इसकी खपत तेजी से बढ़ रही है. घरेलू बाजार में इतनी भारी डिमांड है कि एक्सपोर्ट के ऑर्डर पूरे करना मुश्किल हो रहा है. हर साल बकरे के मीट की घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार में 15 से 20 फीसदी तक डिमांड बढ़ रही है. बीते 10 सालों में बकरे के मीट का बाजार दोगुना हो चुका है.
घरेलू बाजार में डिमांड का असर
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, देश में बकरे के मीट के दाम बीते एक दशक में लगभग दोगुने हो गए हैं. पहले जहां मीट 350 रुपये किलो तक बिकता था, वहीं अब कई जगहों पर यह लगभग 800 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गया है. त्योहारों जैसे बकरीद, होली और दीवाली के समय कीमतों में और भी उछाल देखने को मिलता है. बिहार, बंगाल और असम जैसे राज्यों में तो ब्लैक बंगाल बकरे का मीट करीब 900 से 1000 रुपये प्रति किलो तक में बिकता है, क्योंकि यह अपनी खासियत के लिए जाना जाता है.
क्या है ब्लैक बंगाल बकरे की यूएसपी?
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, किसी भी प्रोडक्ट की तरह बकरे के मीट की भी एक यूएसपी (Unique Selling Point) तय की जानी चाहिए. ब्लैक बंगाल नस्ल के बकरे की यूएसपी बेहद खास है इसका मीट सिर्फ हांडी में पकाने के लिए उपयुक्त होता है. अगर इसे प्रेशर कुकर में पकाया जाए तो यह मीट शोरबे के साथ घुल जाता है और अपनी पहचान खो देता है. वहीं दूसरी नस्लों का मीट हांडी में इतनी जल्दी नहीं गलता. यही वजह है कि ब्लैक बंगाल का मीट स्वाद और बनावट दोनों में अलग माना जाता है. इतना ही नहीं, इस नस्ल की खाल (leather) भी उच्च गुणवत्ता वाली मानी जाती है, जो चमड़ा उद्योग में उपयोग होती है.
वैज्ञानिक और योजनाबद्ध बकरी पालन की जरूरत
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार अगर किसान और पशुपालक बाजार की जरूरत को समझकर साइंटिफिक तरीके से बकरी पालन करें, तो इससे न सिर्फ मीट की गुणवत्ता बढ़ेगी बल्कि किसानों की आय भी दोगुनी हो सकती है. बस जरूरत है कि हम बकरी पालन को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से करें और हर नस्ल की खासियत को पहचानें. तभी भारत मीट एक्सपोर्ट में भी अपनी पूरी क्षमता का इस्तेमाल कर पाएगा.