न खाद बदली, न मेहनत बढ़ी, काली फसलों ने दिया तीन गुना मुनाफा, जाने खेती कैसे बनी फायदे का सौदा!

किसान अब परंपरागत फसलों की जगह काली फसलों की खेती की ओर रुख कर रहे है. इसमें काला गेहूं, काला चना, काली हल्दी, काले आलू और काला तिल शामिल हैं. जानिए कैसे किसान बिना किसी अतिरिक्त खर्च के काली फसलों से बदल रहें अपनी किस्मत.

नोएडा | Published: 24 Dec, 2025 | 03:38 PM

Agriculture Tips: मध्य प्रदेश के युवा किसान ने यह साबित कर दिया कि सही बीज चुनकर खेती की तस्वीर बदली जा सकती है. उन्होंने एक एकड़ जमीन से करीब तीन लाख रुपये की कमाई की है, वह भी बिना किसी अतिरिक्त खर्च के. जानिए काली फसलों ने कैसे बदली किसान की किस्मत.

किसान अब पुरानी कृषि पद्धति से हटकर नई चीजें आजमाने की ओर अग्रसर है और खेती को मुनाफे का सौदा बनाने के लिए खेती में नवाचार भी कर रहें हैं. खेती-किसानी को घाटे का काम मानने वाले युवा किसानों के लिए मध्य प्रदेश के युवा किसान की कहानी एक मिसाल बन गई है. उन्होंने खेती में कोई बड़ा बदलाव नहीं किया, न तो खेती की पद्धति बदली, न ही खाद, पानी या मेहनत बढ़ाई, बस बीज बदले और एक एकड़ जमीन से करीब तीन लाख रुपये की कमाई कर ली.

15 साल से खेती में नए प्रयोग

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार किसान अपने फार्म हाउस पर पिछले 15 वर्षों से खेती में नए-नए प्रयोग कर रहे हैं. हर साल कुछ अलग करने की उनकी यह सोच आज कई किसानों के लिए प्रेरणा स्रोत बना रही है. उनकी इनोवेटिव मल्टी लेयर खेती पर देश के तीन राज्यों के चार विश्वविद्यालयों में शोध भी हो रहा है. इस बार उन्होने काली फसलों पर ऐसा प्रयोग किया है कि, जिस पर चलकर किसान अधिक मुनाफा कमा सकेंगे.

काली फसलों से बढ़ी कमाई

इस बार किसान ने एक एकड़ जमीन में परंपरागत फसलों की जगह काली फसलों की खेती की. इसमें काला गेहूं, काला चना, काली हल्दी, काले आलू और काली तिल शामिल हैं. खेती का तरीका पूरी तरह सामान्य रहा, वही सिंचाई, वही मेहनत और वही देखभाल रही बस फर्क केवल बीज का था. इस प्रयोग का नतीजा चौंकाने वाला रहा. जहां पहले एक एकड़ से मुश्किल से एक लाख रुपये की आमदनी होती थी, वहीं अब वही जमीन ढाई से तीन लाख रुपये तक का मुनाफा देने लगी है. कारण साफ है काली फसलों की बाजार में डिमांड ज्यादा होती है और इनके दाम सामान्य फसलों से दो से चार गुना तक मिल जाते हैं.

बिना अतिरिक्त लागत बढ़ी आमदनी

किसान का कहना है कि कुदरत ने हमें बीजों के रूप में अनमोल खजाना दिया है. हमारे पूर्वज इन्हीं पारंपरिक और पोषक बीजों का उपयोग करते थे. इन काली फसलों में पोषक तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं. इसी वजह से लोग इन फसलों को पसंद कर रहे हैं और बाजार में इनकी मांग लगातार बढ़ रही है. उन्होने बताया कि काली खेती में न कोई खास तकनीक चाहिए और न ही अतिरिक्त खर्च की जरूरत होती है. इन फसलों की भी सामान्य खेती की तरह ही बुवाई और देखभाल करनी होती है, अगर किसान सही बीज चुन लें, तो खेती की लागत कम हो सकती है और आमदनी कई गुना बढ़ सकती है.

पोषण और मुनाफे का संगम

काली फसलों की खास बात यह है कि इनमें भरपूर मात्रा में पोषक तत्व मौजूद होते हैं, जो सेहत के लिए फायदेमंद है. इसी वजह से लोग इन फसलों को पसंद कर रहे हैं और बाजार में इनकी मांग लगातार बढ़ रही है. काले आलू में आयरन की मात्रा अधिक होती है, जिसकी कीमत 80 से 100 रुपये प्रति किलो तक मिलती है. काला गेहूं 60 से 80 रुपये, काला चना 100 से 120 रुपये और काली हल्दी करीब 200 रुपये प्रति किलो तक बाजारों में बिकती है. काली तिल की मांग भी तेजी से बढ़ रही है.

खेती बन रही फायदे का सौदा

किसान का कहना है कि यदि किसान भाई पारंपरिक सोच से बाहर निकलकर ऐसे बीजों को अपनाएं, तो खेती दोबारा मुनाफे का व्यवसाय बन सकती है. “काली खेती” न केवल किसानों की आय बढ़ाती है, बल्कि समाज को पोषण से भरपूर और सेहतमंद भोजन भी दे सकती है.

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