क्या है SPS नीति? ब्रिटेन से ट्रेड डील के बावजूद क्यों नहीं आसान हुई भारतीय किसानों की राह
FTA के बाद उम्मीद थी कि भारतीय कृषि उत्पादों को जीरो ड्यूटी यानी बिना किसी शुल्क के ब्रिटेन भेजा जा सकेगा, लेकिन इन SPS शर्तों के कारण यह राहत अधूरी रह सकती है.
भारत और ब्रिटेन के बीच हाल ही में हुए मुक्त व्यापार समझौते (FTA) ने दोनों देशों के बीच व्यापार को नई दिशा देने की उम्मीद जगाई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ब्रिटिश पीएम कीर स्टार्मर की मुलाकात के बाद इस समझौते को ऐतिहासिक बताया गया. लेकिन हकीकत यह है कि भारतीय किसानों और कृषि उत्पाद निर्यातकों के लिए ब्रिटेन का बाजार अब भी चुनौतियों से भरा हुआ है.
डील हुई, लेकिन नियम अब भी सख्त
बिजनेस लाइन की रिपोर्ट के अनुसार, ब्रिटेन भले ही अब यूरोपीय संघ (EU) का हिस्सा नहीं है, लेकिन वहां अब भी खाद्य सुरक्षा और गुणवत्ता को लेकर बहुत कड़े नियम लागू हैं. सैनिटरी और फाइटो-सैनिटरी (SPS) नाम के ये नियम यह तय करते हैं कि किसी देश से आने वाला कृषि उत्पाद कितनी सफाई, कीटनाशक अवशेष, या बैक्टीरिया जैसी चीजों से मुक्त है.
FTA के बाद उम्मीद थी कि भारतीय कृषि उत्पादों को जीरो ड्यूटी यानी बिना किसी शुल्क के ब्रिटेन भेजा जा सकेगा, लेकिन इन SPS शर्तों के कारण यह राहत अधूरी रह सकती है. विशेषज्ञों का मानना है कि ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के बीच SPS नियमों में तालमेल बढ़ने से भारत पर EU जैसे कड़े नियम लागू हो सकते हैं, जिससे कई उत्पादों को निर्यात करना और कठिन हो जाएगा.
आंकड़े क्या कहते हैं?
साल 2024-25 में भारत ने ब्रिटेन को कुल 5.23 लाख टन कृषि उत्पाद निर्यात किए, जिसकी कीमत लगभग 997 मिलियन डॉलर थी. यह आंकड़ा 2019-20 की तुलना में बेहतर है, जब 4.58 लाख टन (686 मिलियन डॉलर) का निर्यात हुआ था.
सबसे ज्यादा निर्यात बासमती चावल का हुआ -1.81 लाख टन, जिसकी कीमत लगभग 191 मिलियन डॉलर रही. इसके अलावा 28 हजार टन गैर-बासमती चावल, मसाले, ताजे फल-सब्जियां और प्रोसेस्ड फूड भी बड़ी मात्रा में भेजे गए.
सबसे ज्यादा भेजे गए उत्पाद
- बासमती चावल
- मसाले
- प्रोसेस्ड फल और जूस
- ताजे फल
- समुद्री उत्पाद
- चाय
- अनाज आधारित उत्पादॉ
- दालें
SPS नियम क्या हैं और क्यों मुश्किल हैं?
SPS यानी Sanitary and Phytosanitary Measures, यह नियम यह तय करते हैं कि कोई कृषि उत्पाद कितना सुरक्षित और स्वास्थ्य के लिए अनुकूल है. इनमें कीटनाशकों की मात्रा (MRL -Maximum Residue Limit), पैकेजिंग, भंडारण और संक्रमण रहित प्रक्रिया जैसी बातों का सख्त पालन जरूरी होता है.
अब ब्रिटेन और EU के बीच SPS नियमों के सामंजस्य की कोशिश हो रही है, जिसका मतलब है कि भारत को यूरोपीय जैसे कड़े स्टैंडर्ड्स को भी मानना पड़ेगा. इससे लागत बढ़ेगी, और जीरो ड्यूटी का लाभ कम हो जाएगा.
क्या हो सकता है रास्ता?
वाणिज्य नीति विशेषज्ञ एस. चंद्रशेखरन का मानना है कि भारत को इसे संकट नहीं बल्कि अवसर की तरह देखना चाहिए. तकनीकी नवाचार, ऑटोमेशन, AI और IoT जैसे उपकरणों की मदद से कृषि उत्पादों की गुणवत्ता बेहतर की जा सकती है. इससे न सिर्फ ब्रिटेन बल्कि अन्य सख्त बाजारों में भी भारतीय उत्पादों की स्वीकार्यता बढ़ेगी.