बासमती चावल निर्यात कीमतें 17 साल के निचले स्तर पर, फिर भी हुई कमाई

सरकार ने सितंबर 2024 में निर्यातकों की मांग पर न्यूनतम निर्यात मूल्य (MEP) को हटा दिया था. इसके कारण निर्यात की मात्रा में वृद्धि हुई, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि निर्यात के लिए नए नियम बनाना जरूरी है ताकि कीमतें भी बेहतर रहें और किसानों को अधिक लाभ मिले.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 12 Jun, 2025 | 02:09 PM

बासमती चावल, जो भारत की पहचान और खास फसल है, इस साल निर्यात के मामले में चुनौतियों का सामना कर रहा है. दरअसल, बासमती चावल की निर्यात कीमतें पिछले 17 सालों में सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई हैं, लेकिन निर्यात की बढ़ी हुई मात्रा ने इस गिरावट के असर को कम किया है. इस बदलाव के बीच, विशेषज्ञ भी बासमती चावल के निर्यात को और मजबूत बनाने के लिए नीतिगत सुधारों की आवश्यकता पर जोर दे रहे हैं.

कीमतें गिरीं, लेकिन निर्यात बढ़ा

अक्टूबर 2024 से शुरू हुए इस सीजन में बासमती चावल की निर्यात कीमतें करीब 20 प्रतिशत कम हो गईं. पिछले साल जहां कीमत 1,226 डॉलर प्रति टन थी, वहीं इस बार शुरुआत 977 डॉलर प्रति टन से हुई. इसके बाद भी कीमतों में लगातार गिरावट आई और मई 2025 तक कीमतें 831 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गईं, जो एक साल पहले के 1,080 डॉलर से काफी कम है.

फिर भी निर्यातक निराश नहीं हुए. उन्होंने अपनी निर्यात मात्रा बढ़ा कर अपनी आमदनी को बराबर बनाए रखा. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, अक्टूबर 2024 से अप्रैल 2025 के बीच बासमती चावल का निर्यात 16 प्रतिशत बढ़कर लगभग 4 मिलियन टन हो गया, जो पिछले साल की तुलना में काफी ज्यादा है.

कुछ निर्यातकों का कहना है कि बासमती चावल की कीमतें पिछले कई सालों में स्थिर रही हैं, लेकिन 2014-15 में यह कीमतें थोड़ी ऊपर गईं. वहीं, इस बार कीमतें कम होने की वजह बढ़े हुए उत्पादन और वैश्विक बाजार में बदलाव बताई जा रही है.

बिजनेस लाइन की रिपोर्ट के अनुसार विशेषज्ञ दिनेश छत्रा के बताया कि पिछले साल रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण बासमती चावल की मांग बढ़ गई थी, जिससे कीमतें ऊंची हो गई थीं. इस साल भी मांग बनी हुई है, लेकिन उत्पादन के बढ़ने से कीमतें नीचे आई हैं.

वहीं व्यापार नीति विशेषज्ञ एस. चंद्रशेखरन ने कहा है कि बासमती चावल के निर्यात को और बेहतर बनाने के लिए नीतियों का पुनरावलोकन जरूरी है. वैश्विक बाजार में तेजी से बदलती परिस्थितियों में गुणवत्ता और निर्यात मानकों को संतुलित रखना होगा. वर्तमान मानक लगभग 25 साल पुराने हैं और इन्हें आधुनिक आवश्यकताओं के अनुसार अपडेट करने की जरूरत है.

सरकार ने सितंबर 2024 में निर्यातकों की मांग पर न्यूनतम निर्यात मूल्य (MEP) को हटा दिया था. इसके कारण निर्यात की मात्रा में वृद्धि हुई, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि निर्यात के लिए नए नियम बनाना जरूरी है ताकि कीमतें भी बेहतर रहें और किसानों को अधिक लाभ मिले.

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