Nagpuri Buffalo : दूध की बढ़ती मांग ने डेयरी बिजनेस को गांव से शहर तक मुनाफे का मजबूत जरिया बना दिया है. आज लोग पैकेट दूध के साथ-साथ ताजा दूध को ज्यादा पसंद कर रहे हैं. ऐसे में सही नस्ल की भैंस चुनना सबसे अहम हो जाता है. अगर आप देसी नस्ल, कम देखभाल और भरोसेमंद दूध उत्पादन चाहते हैं, तो नागपुरी भैंस आपके लिए शानदार विकल्प है. यह नस्ल सालाना करीब 1200 लीटर तक दूध देने की क्षमता रखती है और किसी भी तरह के मौसम में अपने आप को ढाल लेती है.
डेयरी व्यवसाय के लिए क्यों खास है नागपुरी भैंस?
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, नागपुरी भैंस एक स्वदेशी नस्ल है, जो मुख्य रूप से मध्य भारत के नागपुर और विदर्भ क्षेत्रों में पाई जाती है. इन इलाकों की गर्म और शुष्क जलवायु में यह भैंस अच्छी तरह ढल जाती है. यही वजह है कि कम पानी, ज्यादा गर्मी और सीमित संसाधनों में भी यह संतोषजनक दूध देती है. अलग-अलग क्षेत्रों में इसे कई नामों से जाना जाता है, लेकिन दूध उत्पादन और सहनशक्ति इसकी सबसे बड़ी पहचान है. डेयरी किसानों के लिए यह नस्ल स्थिर आमदनी का भरोसा देती है.
नागपुरी भैंस की पहचान और शारीरिक विशेषताएं
इस नस्ल का शरीर अन्य भारी-भरकम भैंसों की तुलना में थोड़ा छोटा और हल्का होता है. रंग आमतौर पर काला होता है, जबकि चेहरे, पैरों और पूंछ के सिरे पर सफेद धब्बे दिखाई देते हैं. इसके सींग लंबे, सपाट और पीछे की ओर मुड़े होते हैं. चेहरा सीधा और पतला होता है, गर्दन लंबी और मजबूत दिखती है. नर की औसत ऊंचाई लगभग 145 सेमी और मादा की करीब 135 सेमी होती है. हल्के अंग और छोटी पूंछ इसे तेज गर्मी में भी आरामदेह बनाए रखते हैं.
दूध उत्पादन और गुणवत्ता में भरोसेमंद
नागपुरी भैंस को दूध उत्पादन के लिए उन्नत किस्मों में गिना जाता है. एक स्तनपान अवधि औसतन 286 दिन की होती है. इस दौरान यह 1055 से 1200 लीटर तक दूध दे सकती है. इसके दूध में वसा की मात्रा करीब 7.7 प्रतिशत तक पाई जाती है, जो बाजार में अच्छे दाम दिलाती है. सही चारा, साफ-सफाई और समय पर देखभाल से इसका उत्पादन और बेहतर हो सकता है. खास बात यह है कि यह नस्ल 47 डिग्री सेल्सियस तक की गर्मी भी सहन कर लेती है.
कीमत, पालन और किसानों को फायदा
नागपुरी भैंस की कीमत आमतौर पर 80 से 90 हजार रुपये के बीच होती है. कीमत भैंस की उम्र, दूध देने की क्षमता और क्षेत्र पर निर्भर करती है. शुरुआती निवेश मध्यम है, लेकिन कम बीमारी, स्थिर दूध उत्पादन और कम रख-रखाव की वजह से लागत जल्दी निकल आती है. यही कारण है कि ग्रामीण क्षेत्रों में यह किसानों की आय का मजबूत आधार बनी हुई है.