Murrah Buffalo : आज गांव से लेकर शहर तक डेयरी फार्मिंग तेजी से लोकप्रिय हो रही है, क्योंकि यह ऐसा व्यवसाय है जिसमें रोज कमाई होती है और जोखिम भी कम रहता है. जिन्हें खेती के साथ कोई स्थायी और लाभदायक काम चाहिए, उनके लिए डेयरी सबसे आसान शुरुआत बन सकती है. हालांकि डेयरी में सही नस्ल का चयन बहुत जरूरी होता है, और इसी वजह से मुर्रा भैंस देशभर के किसानों की पहली पसंद बन गई है. इसकी दूध देने की क्षमता, सहनशीलता और बाजार में बड़े स्तर पर इसकी मांग इसे लाखों की कमाई का मजबूत आधार बनाती है.
मुर्रा भैंस की खास पहचान और लोकप्रियता
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, मुर्रा भैंस को उसकी काली चमकदार त्वचा और मजबूत शरीर की वजह से काली सुंदरता भी कहा जाता है. इसका शरीर गठीला होता है और पूंछ के सिरे पर सफेद बाल इसके अलग पहचान बनाते हैं. इसकी आंखें बड़ी और कान छोटे मुड़े हुए होते हैं, जबकि सींगें छोटी और घुमावदार रहती हैं. किसानों के बीच इसकी लोकप्रियता इसलिए भी बढ़ी है क्योंकि यह नस्ल आसानी से हर मौसम में खुद को ढाल लेती है, चाहे गर्मी हो या ठंड. रोजमर्रा की देखभाल में भी यह ज्यादा खर्च नहीं मांगती, जिसके कारण नए किसान भी इसे आराम से संभाल सकते हैं.
दूध उत्पादन में नंबर–1 और बाजार में जबरदस्त मांग
मुर्रा भैंस की सबसे बड़ी खासियत इसका दूध उत्पादन है. यह रोजाना औसतन 12 से 18 लीटर दूध देती है, जबकि अच्छी देखभाल के साथ यह 20 लीटर से भी ज्यादा दूध दे सकती है. इसके दूध का फैट 7 से 8 प्रतिशत तक रहता है, जिससे घी, मक्खन और पनीर की गुणवत्ता बेहद बढ़िया होती है. यही कारण है कि बाजार में मुर्रा दूध की कीमत 60 से 80 रुपये प्रति लीटर तक आसानी से मिल जाती है. बड़े शहरों की डेयरी कंपनियां और मिल्क प्लांट भी मुर्रा दूध को प्राथमिकता देते हैं. इस नस्ल का दूध स्वाद, गाढ़ेपन और पोषण से भरपूर होता है, इसलिए इसकी बाजार में कभी कमी नहीं होती.
मुर्रा पालन से किसान कैसे कमाएं लाखों रुपए?
अगर कोई किसान सिर्फ दो मुर्रा भैंस से दूध उत्पादन शुरू करता है, तो वह हर महीने लगभग 900 लीटर दूध बेच सकता है. यदि दूध की कीमत औसतन 70 रुपये प्रति लीटर मान ली जाए, तो महीने की कमाई करीब 63,000 रुपये होती है. साल भर में यह आय 7.5 लाख रुपये से भी ज्यादा पहुंच जाती है. इसके अलावा मुर्रा भैंस के बछड़े–बछिया अच्छी राशि में बिकते हैं और गोबर से कम्पोस्ट बनाकर भी अतिरिक्त कमाई की जा सकती है. बीमारी का खतरा भी कम रहने से इलाज पर खर्च नहीं होता और किसान की बचत अपने आप बढ़ जाती है.