अगर आप मछली पालन करते हैं तो यह खबर आपके लिए बेहद जरूरी है. भारत में पिछले दो दशकों से एक ऐसी खतरनाक बीमारी फैल रही है, जो अगर एक बार तालाब में आ जाए तो मछलियों को बचाना मुश्किल हो जाता है. इस बीमारी का नाम है एपीजुएटिक अल्सरेटिव सिंड्रोम (EUS). यह मछलियों की त्वचा पर खून के धब्बे और घाव बना देती है, जिससे मछलियां धीरे-धीरे मरने लगती हैं. खासकर बारिश के बाद यह बीमारी तेजी से फैलती है. ऐसे में मछली पालकों को समय रहते इसके लक्षण, कारण और बचाव के तरीके जानना जरूरी है.
क्या है एपीजुएटिक अल्सरेटिव सिंड्रोम बीमारी?
केंद्र सरकार के मत्स्य पालन विभाग के अनुसार, EUS यानी एपीजुएटिक अल्सरेटिव सिंड्रोम एक जीवाणु जनित बीमारी है जो पहली बार 1983 में त्रिपुरा में देखी गई थी. इसके बाद यह धीरे-धीरे पूरे भारत में फैल गई. यह बीमारी खासकर बारिश के बाद और ठंड की शुरुआत में फैलती है. शुरुआत में यह गहरे पानी में रहने वाली मछलियों जैसे मांगूर, सिंघाड़ा, कटरंग आदि को प्रभावित करती है, लेकिन कुछ ही समय में यह तालाब में पाली जा रही कार्प मछलियों (कतला, रोहू, मृगल) को भी चपेट में ले लेती है.
इससे मछली की त्वचा पर खून के धब्बे बनते हैं जो बाद में गहरे घावों (अल्सर) में बदल जाते हैं. इसके अलावा सिर और पूंछ के आसपास के हिस्से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं. इतना ही नहीं धीरे-धीरे मछली की पूंछ और पंख गलने लगते हैं और अंत में मछलियां मरकर तालाब के किनारे तैरती नजर आती हैं.
बारिश के मौसम में बढ़ता है तालाबों का जहर
सर्दी के मौसम में मछली पालन में कई खतरे बढ़ जाते हैं. क्योंकि बारिश के साथ खेतों के कीटनाशक और यूरिया तालाबों में पहुंचते हैं, जिससे पानी प्रदूषित हो जाता है. वहीं, ठंड के कारण पानी में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है, जिससे मछलियों की रोग प्रतिरोधक क्षमता घटती है. ऐसे में बैक्टीरिया, वायरस और फंगस मिलकर मछलियों को बीमार करते हैं. साथ ही, गंदे पानी में अमोनिया का स्तर बढ़ जाता है, जो मछलियों के लिए जानलेवा होता है.
किन मछलियों पर ज्यादा होता है असर?
इस बीमारी की शुरुआत तल में रहने वाली मछलियों से होती है. इसके बाद यह सतह की मछलियों जैसे कतला, रोहू और मृगल तक पहुंच जाती है. वहीं, बीमारी के अंतिम चरण में बड़ी संख्या में मछलियां मर जाती हैं, जिससे भारी आर्थिक नुकसान हो सकता है.
ऐसे करें इस बीमारी से बचाव
- पहले बीमार रह चुकी मछलियों से कभी बीज न लें, वरना अगली पीढ़ी भी संक्रमित हो सकती है.
- तालाब के चारों ओर बांध बनाएं, इससे खेती का पानी सीधे तालाब में नहीं पहुंचेगा.
- चूने का इस्तेमाल करें, हर एकड़ में कम से कम 200 किलो चूना मिलाएं ताकि पानी का पीएच बैलेंस रहे.
- पंप या ब्लोअर से तालाब के पानी में ऑक्सीजन मिलाते रहें, खासकर सर्दियों में जब ऑक्सीजन की कमी होती है.
- प्रति एकड़ तालाब में 5 किलो मोटा नमक डालें, जिससे मछलियों की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है.