दार्जिलिंग की मशहूर चाय पर मंडरा रहे संकट के बादल, परेशान किसानों ने सरकार से की ये मांग

2025 में लगातार बारिश और अक्टूबर में आई भीषण प्राकृतिक आपदा ने दार्जिलिंग चाय उत्पादन को गंभीर रूप से प्रभावित किया. 71 में से 27 चाय बागान सीधे प्रभावित हुए और हजारों चाय की झाड़ियां बह गईं. दार्जिलिंग जिले में 459 से अधिक भूस्खलन दर्ज किए गए.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 23 Oct, 2025 | 11:32 AM

Darjeeling Tea Crisis: दार्जिलिंग की चाय, जिसे “चायों की रानी” कहा जाता है और भारत का पहला GI टैग प्राप्त उत्पाद है, इस साल गंभीर संकट का सामना कर रही है. अपने अनोखे स्वाद और खुशबू के लिए विश्व प्रसिद्ध यह चाय अब उत्पादन की लगातार गिरावट का सामना कर रही है. मौसम की मार और भूस्खलन ने चाय के बागानों को बेहाल कर दिया है, जिससे न केवल उत्पादन घट रहा है बल्कि मजदूरों और किसानों की समस्याएं भी बढ़ गई हैं.

विशेषज्ञों का कहना है कि यदि जलवायु और आर्थिक परिस्थितियों में सुधार नहीं हुआ, तो आने वाले वर्षों में दार्जिलिंग चाय अपनी वैश्विक पहचान खो सकती है.

मौसम और भूस्खलन से पैदावार में गिरावट

2025 में लगातार बारिश और अक्टूबर में आई भीषण प्राकृतिक आपदा ने दार्जिलिंग चाय उत्पादन को गंभीर रूप से प्रभावित किया. 71 में से 27 चाय बागान सीधे प्रभावित हुए और हजारों चाय की झाड़ियां बह गईं. दार्जिलिंग जिले में 459 से अधिक भूस्खलन दर्ज किए गए.

इंडियन टी एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन (ITEA) के चेयरमैन अंशुमन कनोरिया के अनुसार, “मौसम की वजह से उत्पादन अब तक के सबसे निचले स्तर पर रहने वाला है. मजदूर भी कम हैं क्योंकि वे अपने घरों की मरम्मत में व्यस्त हैं.”

लगातार गिरता उत्पादन

चाय बोर्ड इंडिया के आंकड़ों के अनुसार:

  • जनवरी-अगस्त 2025 में उत्पादन: 3.59 मिलियन किलो
  • इसी अवधि 2024 में: 4.06 मिलियन किलो
  • 2024 का कुल उत्पादन: 5.60 मिलियन किलो
  • 2023 का कुल उत्पादन: 6.01 मिलियन किलो

पिछले एक दशक में दार्जिलिंग चाय उद्योग लगातार गिरावट देख रहा है. 2011 में उत्पादन 9.14 मिलियन किलो था, जो अब अनुमानित 5 मिलियन किलो तक गिर गया है.

आर्थिक और मजदूर संकट

दार्जिलिंग चाय उद्योग पहले से ही कई समस्याओं का सामना कर रहा है. सबसे बड़ी चुनौती मजदूरों की कमी और उनकी बढ़ती मजदूरी है, जिससे बागानों में काम करने वाले लोगों की उपलब्धता कम हो रही है. इसके साथ ही, वित्तीय दबाव और उत्पादन लागत में लगातार वृद्धि ने उद्योग पर अतिरिक्त बोझ डाल दिया है. वहीं, नेपाल से सस्ती चाय के आयात ने घरेलू बाजार में दार्जिलिंग चाय की मांग को भी प्रभावित किया है. इन सभी चुनौतियों के चलते किसानों और चाय उत्पादकों की मुश्किलें बढ़ गई हैं और उन्हें अपने बागानों और उत्पादन को बनाए रखने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ रही है.

निर्यात और बाजार की स्थिति

दार्जिलिंग चाय की लगभग आधी पैदावार निर्यात की जाती है. पिछले कई वर्षों से निर्यात 3 से 3.25 मिलियन किलो के बीच स्थिर है. हालांकि, उत्पादन घटने के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतें थोड़ी बढ़ीं, लेकिन लागत के हिसाब से यह पर्याप्त नहीं है. प्रमुख निर्यात देश जर्मनी और जापान हैं.

मदद की अपील

दार्जिलिंग टी एसोसिएशन ने राज्य सरकार से राहत और प्रशासनिक मदद की मांग की है. मिरिक, रोंगबोंग और दार्जिलिंग के कई बागान भूस्खलन और बारिश से प्रभावित हुए हैं. एसोसिएशन ने कहा कि प्रभावित मजदूरों और बागानों को तुरंत सहायता प्रदान की जाए ताकि उद्योग को सामान्य स्थिति में लाया जा सके.

दार्जिलिंग की चाय सिर्फ एक आर्थिक उत्पाद नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और पहचान का प्रतीक भी है. अगर समय रहते राहत और समर्थन नहीं मिला, तो न केवल उत्पादन में कमी आएगी, बल्कि विश्व स्तर पर इसकी अनोखी पहचान भी खतरे में पड़ सकती है.

Get Latest   Farming Tips ,  Crop Updates ,  Government Schemes ,  Agri News ,  Market Rates ,  Weather Alerts ,  Equipment Reviews and  Organic Farming News  only on KisanIndia.in

फलों और सब्जियों के उत्पादन में भारत किस नंबर पर है?

Side Banner

फलों और सब्जियों के उत्पादन में भारत किस नंबर पर है?