बिहार में कई युवा अब पारंपरिक खेती के साथ-साथ नए और कम लागत वाले व्यवसायों की ओर रुख कर रहे हैं. खासकर जलभराव वाले क्षेत्रों में बत्तख पालन एक नया और सफल प्रयोग बनकर उभरा है. इस मॉडल में न जमीन की जरूरत होती है, न ही महंगे चारे की. सिर्फ थोड़ी सूझ-बूझ और सही योजना से ग्रामीण युवा बिना पूंजी लगाए लाखों रुपये की कमाई कर रहे हैं.
जमीन और चारे पर खर्च नहीं, फिर भी मुनाफा भरपूर
इस बत्तख पालन मॉडल की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें न फार्म बनाने की जरूरत है और न ही बत्तखों के लिए अलग से चारा खरीदने की. बत्तखों को पानी से भरे खेतों या निचले इलाकों में छोड़ा जाता है, जहां वे खुद ही कीड़े-मकोड़े, काई, छोटे मछलियों और अन्य प्राकृतिक आहार खाकर पेट भर लेती हैं. रात में इन्हें मच्छरदानी से बने घेरे में सुरक्षित रखा जाता है और सुबह होते ही खुला छोड़ दिया जाता है. इस तरीके से किसानों का चारे और देखभाल पर खर्च ना के बराबर हो जाता है.
हर दिन एक अंडा, हर महीने सैकड़ों की कमाई
इस मॉडल में बत्तखें प्रतिदिन एक अंडा देती हैं, जिसकी बाजार में कीमत लगभग 12 रुपये तक मिल जाती है. यानी एक बत्तख से महीने में करीब 360 रुपये की कमाई हो जाती है. अगर किसान के पास 500 से ज्यादा बत्तखें हों, तो यह कमाई लाखों रुपये तक पहुंच जाती है. इसके अलावा, एक साल बाद इन बत्तखों को 400 रुपये – 500 रुपये प्रति बत्तख बेचकर भी अच्छा लाभ कमाया जा सकता है.
उदाहरण के तौर पर, 550 बत्तखों से सालाना 3 लाख रुपये से अधिक की कमाई आसानी से संभव हो जाती है- वो भी बिना किसी बड़ी पूंजी के.
शुरुआती लागत बेहद कम, सिर्फ बच्चे खरीदने का खर्च
इस बत्तख पालन के मॉडल की शुरुआत भी बेहद सस्ती होती है. किसान केवल बत्तख के बच्चों को खरीदते हैं, जिनकी कीमत मात्र 36 रुपये प्रति बच्चा होती है. इसके बाद कोई बड़ा निवेश नहीं करना होता. बत्तखें खुद अपना भोजन तलाशती हैं और फार्म की जरूरत भी नहीं होती. जो किसान जलभराव वाले या दलदली इलाकों में रहते हैं, उनके लिए यह तरीका और भी आसान हो जाता है.
बत्तख पालन से आत्मनिर्भरता की ओर कदम
कम लागत, आसान रख-रखाव और लगातार आय के कारण बत्तख पालन बिहार और अन्य राज्यों के ग्रामीण युवाओं के लिए एक बेहतर विकल्प बनता जा रहा है. यह मॉडल उन लोगों के लिए प्रेरणा है, जिनके पास न जमीन है, न बड़ी पूंजी, लेकिन कुछ नया करने की इच्छा है.
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, यह तरीका आज हजारों युवाओं को न केवल आत्मनिर्भर बना रहा है, बल्कि उन्हें अपने गांव में ही रहकर आर्थिक रूप से मजबूत करने का अवसर भी दे रहा है. अगर सरकार और स्थानीय संस्थाएं ऐसे मॉडलों को बढ़ावा दें, तो यह ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार और आय दोनों बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं.