Gram Farming: दलहनी किसानों के बीट चने की फसल का बहुत महत्व है जो कि देसी चने के नाम से भी लोकप्रिय है. यह न केवल पोषण से भरपूर है बल्कि किसानों के लिए आमदनी बढ़ाने का भी अच्छा साधन है. ऐसे में अगर आप किसान हैं और चने की खेती का मन बना रहे हैं लेकिन आपके इलाके में पानी की कमी है तो अब आपको परेशान होने की जरूरत नहीं है. चना की कई किस्मों में से JG 14 किस्म को सूखे इलाकों में भी अच्छी पैदावार देने के लिए जाना जाता है. इसलिए किसानों का इस किस्म का चुनाव करना उनके लिए बेहद ही फायदेमंद साबित हो सकता है.
इस किस्म की खासियत
देसी चना की किस्म JG-14 की सबसे बड़ी खासियत ये है कि ये उन इलाकों में भी अच्छी पैदावार देती है जहां सूखे जैसे हालात हों या फिर जहां सिंचाई का एकमात्र साधन बारिश हो. इस किस्म की खेती करने वाला किसान प्रति हेक्टेयर फसल से 18 से 20 क्विंटल तक पैदावार ले सकता है जो कि 100 से 105 दिनों में पककर कटाई के लिए तैयार भी हो जाएगी. इस किस्म की एक खासियत ये भी है कि ये किस्म विल्ट और जड़ सड़न जैसी बीमारियों से लड़ने की ताकत रखती है. बता दें कि, इस किस्म का दाना मध्यम आकार का होता है और बाजार में इसकी मांग बहुत ज्यादा रहती है.
सही तकनीक से करें खेती
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, देसी चने की किस्म JG-14 की बुवाई का परफेक्ट समय अक्टूबर से नवंबर के बीच का होता है. बता दें कि, इसकी प्रति हेक्टेयर फसल के लिए 75 से 80 किलोग्राम बीजों की जरूरत होती है. बुवाई से पहले खेत की तैयार करते समय जरूरी है कि मिट्टी को प्रति हेक्टेयर की दर से 20 किलोग्राम नाइट्रोजन और 40 किलोग्राम फास्फोरस देने से पौधे तेजी से बढेंगे. किसानों को सलाह दी जाती है कि खरपतवारों को नष्ट करने और मिट्टी को भुरभुरा बनाए रखने के लिए 2 से 3 बार खेत की निराई-गुड़ाई जरूर करें. वैसे तो इस किस्म को ज्यादा सिंचाई की जरूरत नहीं होती है लेकिन फूल और दाना बनने के समय हल्की सिंचाई करना फायदेमंद होता है.
कम लागत में अच्छी कमाई
JG 14 किस्म की खेती किसानों के बीच इसलिए भी लोकप्रिय हो रही है क्योंकि ये किस्म कम लागत में किसानों को अच्छा उत्पादन और कमाई दे रही है. बता दें कि, सूखे इलाकों में भी अच्छी पैदावार देने के कारण किसानों को इसकी खेती के दौरान सिंचाई के लिए अलग से पानी देने की जरूरत नहीं होती है, उन्हें सिंचाई या ज्यादा खाद पर खर्च नहीं करना पड़ता है. यही कारण है कि किसानों को कम लागत में अच्छा उत्पादन और बेहतर बाजार मूल्य मिल जाता है.