Fish Farming: मछलियों के गलफड़ सड़ा देता है फफूंद रोग, किसान को बर्बादी से बचा देंगे ये तरीके

बरसात शुरू होते ही तालाबों और नदियों में फफूंद (Fungus) जनित बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है. खासकर मछली के अंडे, छोटे बच्चे और घायल मछलियां इन रोगों की चपेट में जल्दी आ जाती हैं.

नोएडा | Published: 2 Jul, 2025 | 01:50 PM

बरसात की पहली बूंदें जहां खेतों के लिए वरदान बनकर गिरती हैं, वहीं मछली पालकों के तालाबों में एक छिपा दुश्मन भी साथ आता है. ये कोई बड़ा शिकारी या भूखी मछली नहीं, बल्कि एक अदृश्य बीमारी है, जिसे फफूंद जनित रोग कहा जाता है. शुरुआत में लगता है कि कुछ नहीं, बस मछली पर सफेद रूई जैसा कुछ जमा है. पर यही धागा धीरे-धीरे मछलियों के गलफड़े सड़ा देता है. मछलियों को सांस लेने में दिक्कत होने लगती है और वे एक-एक कर मरने लगती हैं. इतना ही नहीं कई बार यह रोग पूरे झुंड को अपनी चपेट में ले लेता है. बारिश के मौसम में यह खतरा तेजी से फैलता है, जिससे समय पर पहचान और इलाज बेहद जरूरी हो जाता है.

बरसात के साथ फैलता है यह अदृश्य दुश्मन

केंद्र सरकार के मत्स्य पालन विभाग के अनुसार, जैसे ही बरसात शुरू होती है, तालाबों और मछली पालन केंद्रों में नमी बढ़ जाती है. यही नमी फफूंद को फैलने का अच्छा मौका देती है. खासकर मछली के अंडे, छोटे बच्चे और जो मछलियां जाल से घायल हो चुकी होती हैं, वे जल्दी इसकी चपेट में आ जाती हैं. फफूंद उन्हीं हिस्सों पर हमला करता है जो पहले से कमजोर या घायल होते हैं.

क्या है फफूंद जनित रोग?

फफूंद कोई वायरस नहीं, बल्कि एक रोगजनक संक्रमण है. यानी यह तब फैलता है जब मछली पहले से कमजोर हो या उसके शरीर पर चोट लगी हो. ये फफूंद शरीर पर चिपककर तेजी से बढ़ता है और त्वचा, गलफड़े और आंखों तक को संक्रमित कर देता है. यह फफूंद दो तरह के होते हैं.

1. सेप्रोलिग्नीयोसिस फफूंद

इस बीमारी का कारण है सेप्रोलिग्नीयोसिस पैरालिसिका नामक फफूंद. यह उस समय फैलता है जब मत्स्य बीज जाल में फंसकर या ट्रांसपोर्ट के दौरान चोटिल हो जाता है. ये सफेद जालीदार परत बनाता है जो धीरे-धीरे मछली बीज को पूरे शरीर को जकड़ लेती है.

ऐसे पहचानें इस रोग के लक्षण

  • मछलियों के जबड़े फूल जाते हैं और उनमें अंधापन आ सकता है.
  • पैक्टोरल फिन और पूंछ के जोड़ पर खून जमा हो जाता है.
  • शरीर पर रूई जैसे सफेद गुच्छे उभर आते हैं.
  • मछलियां कमजोर, सुस्त और किनारे पर तैरती नजर आती हैं.

सेप्रोलिग्नीयोसिस का इलाज ऐसे करें

सेप्रोलिग्नीयोसिस एक खतरनाक फफूंद जनित रोग है, जो मछलियों के शरीर को धीरे-धीरे सड़ा देता है. अगर इसका इलाज समय पर किया जाए तो मछलियों की जान बचाई जा सकती है. इसके इलाज के लिए कुछ आसान लेकिन असरदार तरीके अपनाने चाहिए.

सबसे पहले मछलियों को इलाज के लिए विशेष घोल में डुबोना जरूरी है. इसके लिए आप 3 फीसदी सामान्य नमक, 1:1000 पोटाश या 1:2000 कैल्शियम सल्फेट का घोल बना सकते हैं. मछलियों को इनमें से किसी एक घोल में 5 मिनट तक डुबोएं. ध्यान रखें कि पानी का तापमान सामान्य हो और घोल की मात्रा सही हो.

अगर मछलियों में संक्रमण ज्यादा है तो यह प्रक्रिया 2-3 दिन के अंतराल पर दोहराई जा सकती है. ध्यान दें कि इलाज के दौरान मछलियों को साफ और ऑक्सीजन युक्त पानी में रखें.

साथ ही घायल या बीमार मछलियों को तालाब से अलग रखें ताकि बीमारी फैल न सके. इसके अलावा समय पर इलाज और थोड़ी सी देखभाल से इस रोग को रोका जा सकता है और मछलियों को स्वस्थ रखा जा सकता है.

fish disease symptoms

मछली पालकों के तालाबों में छिपा दुश्मन

2. ब्रेकियोमाइसिस फफूंद

यह रोग मछलियों के गलफड़ों पर हमला करता है. इस रोग के होने से पहले गलफड़े रंगहीन हो जाते हैं, फिर धीरे-धीरे सड़ने लगते हैं. इससे मछलियों को सांस लेने में दिक्कत होती है और वे मरने लगती हैं. कई बार यह बीमारी एक साथ पूरे झुंड में फैल जाती है.

ब्रेकियोमाइसिस का इलाज कैसे करें?

इस बीमारी का इलाज सावधानी और सही दवाओं से किया जा सकता है. मछलियों को 250 पी.पी.एम. (Parts Per Million) फार्मिलिन के घोल में स्नान कराना चाहिए. इसके बाद 3 फीसदी नमक के घोल से उनके गलफड़ों की सफाई करें. इसके अलावा, तालाब के पानी में 1 से 2 पी.पी.एम. कॉपर सल्फेट मिलाएं. साथ ही, पूरे तालाब में 15 से 25 पी.पी.एम की मात्रा में फार्मिलिन डालें. ये उपाय मछलियों को बीमारी से बचाने में मदद करते हैं.

साफ पानी और देसी उपाय से बचेंगी मछलियां

फफूंद जनित बीमारी से मछलियों को बचाने का सबसे अच्छा तरीका है रोकथाम. बरसात शुरू होने से पहले ही तैयारी कर लेना जरूरी है. सबसे पहले तालाब की अच्छी तरह सफाई करें ताकि सड़ी-गली सामग्री, गंदगी और पुराने रोगाणु हट जाएं. इससे बीमारी फैलने की संभावना काफी कम हो जाती है.

अगर कोई मछली जाल में फंसकर घायल हो गई हो या ट्रांसपोर्ट के समय चोट लग गई हो तो उसे बाकी मछलियों से अलग कर देना चाहिए. घायल मछलियां जल्दी फफूंद की चपेट में आ जाती हैं, इसलिए समय रहते दवा देकर इलाज करें.

तालाब के पानी की क्वालिटी पर लगातार नजर रखना बहुत जरूरी है. क्योंकि गंदा, सड़ा या ऑक्सीजन की कमी वाला पानी फफूंद और दूसरी बीमारियों के पनपने का सबसे बड़ा कारण बनता है. यही नहीं है, समय-समय पर पानी की जांच करें और जरूरत के अनुसार बदलाव करें.

सिर्फ दवा ही नहीं, पोषण और देसी उपाय भी जरूरी हैं. मछलियों को संतुलित आहार दें ताकि उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बनी रहे. साथ ही डॉक्टर की सलाह लेकर नीम, हल्दी जैसे आयुर्वेदिक उपाय आजमाएं. ये प्राकृतिक तरीके मछलियों को संक्रमण से बचाने में मदद करते हैं और कोई नुकसान भी नहीं पहुंचाते.

अगर ये सावधानियां समय पर अपनाई जाएं तो बरसात के मौसम में भी मछलियों को फफूंद जनित बीमारियों से बचाया जा सकता है.