बिहार में 2024-25 में दूध, अंडा और मांस उत्पादन में तेज वृद्धि हुई, जो राष्ट्रीय औसत से अधिक है. मत्स्य पालन में भी सुधार हुआ और मछली उत्पादन 9.59 लाख टन तक पहुंचा. हालांकि प्रति व्यक्ति उपलब्धता अभी भी राष्ट्रीय औसत से कम है.
सर्दियों में पानी का तापमान गिरते ही मछली पालन सबसे ज्यादा प्रभावित होता है. इस मौसम में तालाब की साफ-सफाई, पानी का संतुलन, सही भोजन और नियमित जांच बेहद जरूरी है. विशेषज्ञों के मुताबिक, सही देखभाल अपनाने से किसान उत्पादन घटने से बच सकते हैं और अच्छे लाभ की उम्मीद भी कर सकते हैं.
मछली पालन में सबसे बड़ा खतरा बीमारियां होती हैं, जो पूरे तालाब को नुकसान पहुंचा सकती हैं. काले-सफेद दाग, फिनराट, फफूंद और आंखों की बीमारी जैसी समस्याएं जल्दी फैलती हैं. सही पहचान, समय पर दवा, साफ पानी और तालाब की नियमित सफाई से किसान अपनी मछलियों को सुरक्षित रखकर नुकसान से बच सकते हैं.
सर्दियों में तालाब का तापमान कम होने से मछलियों की ग्रोथ और एक्टिविटी पर बड़ा असर पड़ता है. ऐसे मौसम में थोड़ी-सी लापरवाही से भारी नुकसान हो सकता है. एक्सपर्ट बताते हैं कि तालाब ढकना, पानी में ऑक्सीजन बढ़ाना और धूप में हल्का वॉटर एक्सचेंज जैसे तरीके मछली पालन को सुरक्षित बना सकते हैं.
सर्दियों की ठंड मछलियों के स्वास्थ्य और ग्रोथ पर बड़ा असर डालती है. इसी वजह से बिहार सरकार ने मछली पालकों के लिए जरूरी निर्देश जारी किए हैं. इन उपायों को अपनाने से मछलियों की मौत का खतरा कम होगा, पानी संतुलित रहेगा और उत्पादन भी बढ़ेगा. ये गाइडलाइन छोटे-बड़े सभी मछलीपालकों के लिए बेहद उपयोगी हैं.
मछली पालन करने वाले किसानों के लिए सही वैरायटी चुनना सबसे जरूरी है. कुछ मछलियां कम मेहनत, कम खर्च और कम जगह में भी तेजी से बढ़ती हैं. बाजार में उनकी हमेशा मांग रहती है और कई किस्में सिर्फ छह से आठ महीने में बेचने लायक हो जाती हैं. ऐसे में किसान आसानी से बड़ी कमाई कर सकते हैं.