कृषि मंत्रालय का बड़ा बयान- जीनोम संपादित धान की इन दो किस्मों की होगी बिक्री

कृषि मंत्रालय ने कहा है कि नई जीनोम-संपादित धान की किस्में देशी तकनीक से विकसित हुई हैं और इनसे किसानों की बीज संप्रभुता पर कोई असर नहीं पड़ेगा. हालांकि, वैज्ञानिकों के एक समूह ने CRISPR तकनीक पर IPR को लेकर चिंता जताई है.

नोएडा | Updated On: 29 Jul, 2025 | 05:49 PM

कृषि मंत्रालय ने बताया है कि हाल ही में तैयार की गई जीनोम-संपादित और ज्यादा उपज देने वाली धान की किस्में पूरी तरह देशी तकनीक से विकसित की गई हैं. इसलिए इन किस्मों के बीज किसानों को सरकारी संस्थाओं के जरिए ही दिए जाएंगे. मंत्रालय ने यह भी साफ किया है कि इससे किसानों की ‘बीज संप्रभुता’ पर कोई असर नहीं पड़ेगा. दरअसल, कुछ लोगों ने चिंता जताई थी कि इन नई किस्मों के व्यावसायिक इस्तेमाल पर बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) से जुड़ी दिक्कतें आ सकती हैं.

फाइनेशियल एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, मंत्रालय ने कहा कि DRR धान 100 (कमला) और पुसा राइस DST 1 नाम की ये दोनों किस्में कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा मई में लॉन्च की गई थीं. इन्हें BPT 5204 और MTU 1010 जैसी सार्वजनिक क्षेत्र की पुरानी किस्मों से विकसित किया गया है. इनके बीज राष्ट्रीय बीज निगम, भारतीय बीज सहकारी समिति जैसी सार्वजनिक क्षेत्र की संस्थाएं और संबंधित अनुसंधान संस्थान किसानों को उपलब्ध कराएंगे.

पीए मोदी को पत्र लिखकर की मांग

हालांकि, कृषि वैज्ञानिक मंच नामक वैज्ञानिकों के एक समूह ने इसे ‘जल्दबाजी में किया गया लॉन्च’ बताया है. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर यह चिंता जताई कि इन धान किस्मों में इस्तेमाल की गई CRISPR-Cas9 तकनीक पर बहुराष्ट्रीय कंपनियां IPR का दावा कर सकती हैं. खासकर जब इनका व्यावसायिक उत्पादन शुरू होगा.

4-5 वर्षों में खेती के लिए तैयार होंगी ये किस्में

कृषि मंत्रालय ने संसद में बताया कि कमला और पुसा डीएसटी राइस-1 नामक दोनों धान की किस्में जीनोम एडिटिंग तकनीक (SDN-1) से सभी नियमों और प्रक्रियाओं का पालन करते हुए विकसित की गई हैं. ये किस्में बाहरी डीएनए (exogenous DNA) से मुक्त हैं. कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मई में इन दोनों स्वदेशी किस्मों को लॉन्च किया था. ये किस्में धान की पैदावार को 25-30 फीसदी तक बढ़ा सकती हैं. इन्हें भारतीय धान अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद और भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, दिल्ली द्वारा विकसित किया गया है. ये किस्में अगले 4-5 वर्षों में व्यावसायिक खेती के लिए तैयार होंगी.

कृषि वैज्ञानिकों ने मंच ने जताई चिंता

हालांकि, वैज्ञानिकों के एक समूह, कृषि वैज्ञानिक मंच ने चिंता जताई है कि इन किस्मों को विकसित करने में जो CRISPR-Cas9 तकनीक इस्तेमाल हुई है, वह विदेशी कंपनियों की पेटेंट वाली तकनीक है. ऐसे में भविष्य में किसानों को बीज के लिए बहुराष्ट्रीय कंपनियों (MNCs) पर निर्भर होना पड़ सकता है, जैसा कि Bt कपास के साथ हुआ था. वैज्ञानिकों का कहना है कि जब इन किस्मों का व्यावसायिक इस्तेमाल शुरू होगा, तब इसके लिए भारत को विदेशी कंपनियों से लाइसेंस लेना पड़ सकता है, जिससे किसानों की आत्मनिर्भरता पर असर पड़ सकता है.

50 लाख हेक्टेयर धान का रकबा कम करने में मिलेगी मदद

कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि ये नई धान की किस्में जेनेटिकली मॉडिफाइड (GM) नहीं हैं, क्योंकि इनमें किसी बाहरी जीन को नहीं जोड़ा गया है. इसलिए इनके व्यावसायिक उत्पादन के लिए जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेज़ल कमेटी (GEAC) की मंजूरी की जरूरत नहीं होगी. मंत्री ने कहा कि ये दुनिया की पहली जीनोम एडिटेड धान की किस्में हैं और यह भारत को 50 लाख हेक्टेयर (5 MHa) भूमि पर धान की खेती कम करने के लक्ष्य को पाने में मदद करेंगी. उन्होंने कहा कि ये किस्में देश में दूसरी हरित क्रांति की शुरुआत में अहम भूमिका निभाएंगी.

कृषि मंत्रालय ने जीनोम एडिटिंग रिसर्च पर 486 करोड़ रुपये खर्च किए

2020 से अब तक कृषि मंत्रालय ने जीनोम एडिटिंग रिसर्च पर 486 करोड़ रुपये खर्च किए हैं, जो अलग-अलग परियोजनाओं के तहत दिए गए हैं. 2022 में सरकार ने कुछ खास तरह की जीनोम एडिटेड फसलों को GM फसलों के लिए लागू कड़े बायोसेफ्टी नियमों से छूट दी, ताकि इस तकनीक का ज्यादा उपयोग हो सके और देश में फसलों का जेनेटिक सुधार तेजी से हो सके. आज की तारीख में दुनिया के करीब 30 देशों ने जीनोम एडिटेड फसलों को GMO नहीं माना है, क्योंकि ये तकनीक जेनेटिक इंजीनियरिंग के जरिए नहीं, बल्कि एडिटिंग प्रक्रिया से होती है.

इन धान उत्पादक राज्यों में उगाने की सिफारिश

नई जीनोम एडिटेड किस्में अब देश में बड़े पैमाने पर उगाई जा रही संभा महासुरी और कॉटनडोरा सन्नालु जैसी किस्मों की जगह ले सकती हैं, जो वर्तमान में 9 मिलियन हेक्टेयर में उगाई जाती हैं. केंद्र सरकार ने जो दो नई जीनोम एडिटेड धान की किस्में विकसित की हैं, उन्हें देश के मुख्य धान उत्पादक राज्यों में उगाने की सिफारिश की गई है. इनमें शामिल हैं: आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, पुडुचेरी, बिहार, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, ओडिशा, झारखंड और पश्चिम बंगाल.

भारत ने $12 बिलियन से ज्यादा का चावल निर्यात किया

वर्तमान में भारत में करीब 460 लाख हेक्टेयर (MHa) क्षेत्र में धान की खेती की जाती है, जिसमें खरीफ और रबी, दोनों सीजन शामिल हैं. भारत आज दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा चावल उत्पादक देश है. 2023-24 के फसल वर्ष (जुलाई-जून) में भारत का चावल उत्पादन 137 मिलियन टन यानी 13370 लाख टन (MT) रहा. भारत 2012 से दुनिया का सबसे बड़ा चावल निर्यातक बना हुआ है. वित्त वर्ष 2024-25 (FY25) में भारत ने $12 बिलियन से ज्यादा का चावल निर्यात किया.

Published: 29 Jul, 2025 | 05:45 PM