खेती की घटती आमदनी और बढ़ती लागत के बीच अब किसान सुअर पालन जैसे नए विकल्प अपना रहे हैं, जो कम निवेश में बड़ा मुनाफा देने का भरोसा दे रहे हैं. खास बात ये है कि सरकार भी किसानों को सुअर पालन पर सब्सिडी देकर मदद कर रही है, जिससे इसकी लोकप्रियता और बढ़ रही है. इतना ही नहीं, सुअर पालन मांस उत्पादन तक ही सीमित नहीं है, इसका उपयोग देसी इलाज में भी होता है, जिससे किसानों की आय के नए रास्ते खुलते हैं. यही वजह है कि यह व्यवसाय गांव से लेकर कस्बों तक किसानों की पहली पसंद बनता जा रहा है.
कम लागत में दोगुना फायदा
सुअर पालन से किसानों को एक नहीं, दो फायदे मिलते हैं. पहला, सुअर के मांस की अच्छी कीमत में बिकती है. बाजार में इसके मांस की कीमत औसतन 60 से 70 किलो तक होता है. दूसरा, मादा सुअर की प्रजनन क्षमता पालकों का मालामाल कर रही है. इसकी खास बात यह है कि 115 से 120 दिन में 7 से 8 बच्चों को जन्म देती है. यानी सालभर में 15 से 16 बच्चे देती है. जिससे सुअरों की संख्या तेजी से बढ़ती है और मांस उ त्पादन भी दोगुना होता चला जाता है. इससे किसान को लगातार आमदनी मिलती है.
राष्ट्रीय पशुधन मिशन के तहत 50 फीसदी सब्सिडी
सरकार ने सुअर पालन को बढ़ावा देने के लिए ‘स्टॉक मिशन’(राष्ट्रीय पशुधन मिशन योजना) के तहत 50 फीसदी तक की सब्सिडी का प्रावधान किया है. इस योजना में किसान 100 मादा और 10 नर सुअरों तक का पालन कर सकते हैं. इससे न सिर्फ मांस उत्पादन में बढ़ोतरी होती है, बल्कि किसानों की आय भी स्थिर होती है. इस योजना ने सुअर पालन को आत्मनिर्भरता की ओर ले जाने वाला व्यवसाय बना दिया है.
देसी इलाज में भी कारगर
सुअर पालन का एक और बड़ा फायदा यह है कि इसका उपयोग देसी चिकित्सा में भी किया जाता है. खासकर सुअर के घी की मांग जोड़ों, कमर और घुटनों के दर्द में घरेलू इलाज के रूप में होती है. ग्रामीण इलाकों में इसे सस्ता, असरदार और पारंपरिक इलाज माना जाता है. इससे किसानों को मांस के अलावा देसी उत्पादों की बिक्री से भी लाभ होता है.