केंद्र सरकार ने झारखंड के 12 जिलों में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए 88 क्लस्टर बनाने का फैसला लिया है. यह योजना ‘नेशनल मिशन ऑन नेचुरल फार्मिंग (NMNF)’ के तहत शुरू की जा रही है. इसका उद्देश्य रासायनिक मुक्त और पर्यावरण के अनुकूल खेती को बढ़ावा देना है, जिससे मिट्टी की सेहत सुधरे और किसान रासायनिक खादों पर कम निर्भर रहें. सरकार को उम्मीद है कि इससे किसानों की इनकम में बढ़ोतरी होगी और मिट्टी के हेल्थ में सुधार भी होगा.
द टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, जिन 12 जिलों को चुना गया है, उनमें रांची, पलामू, देवघर, दुमका, गिरिडीह, साहिबगंज, हजारीबाग, लोहरदगा, गुमला, गढ़वा, पूर्वी सिंहभूम और पश्चिमी सिंहभूम का नाम शामिल है. इन जिलों का चयन इस आधार पर किया गया है कि ये या तो नदी घाटियों के पास हैं, आदिवासी आबादी वाले क्षेत्र हैं. खास बात यह है कि इन जिलों में किसान पहले से ही ऑर्गेनिक खेती करते रहे हैं. वहीं, सरकार का मानना है कि झारखंड में जलवायु विविधता और पारंपरिक ज्ञान की वजह से प्राकृतिक खेती की बहुत संभावनाएं हैं.
सीमांत किसानों को होगा फायदा
ऑर्गेनिक फार्मिंग अथॉरिटी ऑफ झारखंड (OFAJ) के निदेशक विकास कुमार ने कहा कि हमारा लक्ष्य खेती को छोटे और सीमांत किसानों के लिए टिकाऊ और लाभकारी बनाना है. उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती सिर्फ एक तरीका नहीं, बल्कि हमारी मिट्टी, भोजन और भविष्य को बचाने का एक आंदोलन है. राज्य सरकार ने 4,400 हेक्टेयर जमीन को प्राकृतिक खेती के तहत लाने का लक्ष्य रखा है. हर क्लस्टर करीब 50 हेक्टेयर में फैला होगा और इसमें लगभग 125 इच्छुक किसान शामिल होंगे. कुल 88 क्लस्टरों में 11,000 किसानों को प्रशिक्षण दिया जाएगा. निदेशक विकास कुमार ने कहा कि इन किसानों को 176 ‘कृषि सखी’ (समुदाय से जुड़ी महिला सहयोगी) मदद करेंगी. इसके अलावा, किसानों को प्राकृतिक खेती से जुड़ी सामग्री की सप्लाई के लिए राज्य में 60 बायो-इनपुट रिसोर्स सेंटर्स भी खोले जाएंगे.
किसानों को मिलेगी ट्रेनिंग
राज्य में नेशनल मिशन ऑन नेचुरल फार्मिंग के प्रतिनिधि कुलदीप कुमार ने कहा कि हम किसान से किसान तक ज्ञान साझा करने का मॉडल अपना रहे हैं. इसमें प्रशिक्षित किसान और कृषि सखी दूसरों को प्राकृतिक खेती की ट्रेनिंग देंगे. इससे खेती के सही तरीके और तेजी से फैल सकेंगे. यह पहल उन जिलों तक भी बढ़ाई जा रही है, जहां पहले से ही कम मात्रा में रासायनिक खाद का इस्तेमाल होता है, जैसे गिरिडीह. यह राष्ट्रीय रणनीति का हिस्सा है, जिससे टिकाऊ खेती को बढ़ावा मिल सके. हर क्लस्टर को जागरूकता अभियान, ट्रेनिंग वर्कशॉप, फसल की सर्टिफिकेशन और मंडियों व लोकल हाट्स से जोड़ने के लिए समर्थन मिलेगा. इसका मकसद इन क्लस्टरों को धीरे-धीरे पूरी तरह ऑर्गेनिक और आत्मनिर्भर खेती प्रणाली में बदलना है.