फसलों के लिए बूस्टर का काम कर रहा जीवामृत, कृषि दीदियां किसानों को सिखा रहीं बनाने का तरीका
बालाघाट जिले में लांजी विकासखंड के ग्राम कनेरी और बिरसा विकासखंड के ग्राम बलगांव और बासिनखान में कृषि सखी दीदियों ने किसानों को जीवामृत बनाना सिखा रही हैं. साथ ही अपने घरों में जीवामृत बनाकर उसकी बिक्री भी कर रही हैं.
मध्य प्रदेश की महिलाएं कृक्षि क्षेत्र में अपनी अहम भूमिका निभा रही हैं. प्रदेश के बालाघाट जिले में कृषि विभाग की ओर से किसानों को केमिकल खाद और कीटनाशक की जगह पर जैविक खाद और कीटनाशक का इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है. जिसके चलते राष्ट्रीय प्राकृतिक कृषि मिशन के तहत जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका मिशन के स्व-सहायता समूह से जुड़ी जैविक और प्राकृतिक खेती करने वाली महिलाओं को कृषि सखी दीदी नियुक्त किया गया है. खास बास बात ये है कि ये कृषि दीदियां किसानों को जैविक और प्राकृतिक खाद बनान सिखा रही हैं.
किसानों को जीवामृत बनाना सिखा रहीं
बालाघाट जिले में लांजी विकासखंड के ग्राम कनेरी और बिरसा विकासखंड के ग्राम बलगांव और बासिनखान में कृषि सखी दीदियों ने किसानों को जीवामृत बनाना सिखाया है. ग्राम कनेरी के किसान श्रीलाल मस्करे के घर में कृषि सखी यशवंती माहुले और लीला राहंगडाले किसानों को जीवामृत बनाने की विधि बता रहीं हैं. बता दें कि, नियुक्त की गई कृषि दीदियां न केवल किसानों को जैविक खाद बनाना सिखा रही हैं बल्कि अपने घरो पर भी जैविक कीटनाशक तैयार कर उनकी बिक्री भी कर रही हैं.
किसानों को खाद बनाना सिखा रहीं कृषि दीदियां
खाद बनाने की विधि
मध्य प्रदेश सरकार के अनुसार, कृषि सखी दीदियों द्वारा बताया गया कि देशी गाय का 10 किलोग्राम गोबर, 8 से 10 लीटर देशी गाय का मूत्र, 1 से 2 किलोग्राम गुड़, 1 से 2 किलोग्राम बेसन, 1 किलोग्राम पेड़ के नीचे की मिट्टी और 180 से 200 लीटर पानी को मिलाकर जीवामृत बनाया जाता है. उन्होंने बताया कि जीवामृत तैयार करने के लिए इन सामग्रियों को प्लास्टिक के ड्रम में डालकर लकड़ी के एक डंडे से घोलना पड़ता है और इस घोल को 2 से 3 दिन तक सड़ने के लिए छाया में रखना होता है. वे आगे बताती हैं कि दिन में 2 बार सुबह- शाम घड़ी की सुई की दिशा में लकड़ी के डंडे से 2 मिनट तक घोल को चलाना होता है. इसके बाद ड्रम को बोरे से ढकना होता है. करीब 3 दिन बाद ड्रम में जीवामृत बनकर तैयार हो जाता है.
सरकार द्वारा नियुक्त की गईं कृषि दीदियां
इस्तेमाल करने का तरीका
इस जैविक जीवामृत का इस्तेमाल 200 लीटर प्रति एकड़ के हिसाब से सिंचाई के पानी के साथ फसल में कर सकते हैं. इन कृषि दीदियों ने किसानों को बताया कि देशी गाय के एक ग्राम गोबर में अनगिनत सूक्ष्म जीवाणु होते हैं. जिसके कारण जीवामृत बनाते समय 10 किलोग्राम गोबर लगभग 200 लीटर पानी में मिलाने से उसमें लाखों- करोड़ों जीवाणु हो जाते हैं. ये जीवाणु धीरे-धीरे अपनी संख्या दोगुनी कर लेते हैं. बता दें कि, 72 घंटे बाद इनकी संख्या अनगिनत हो जाती है. कृषि दीदियां आगे बताती हैं कि, इस जीवामृत को जब पानी के साथ खेतों में डालते हैं तो यह पेड़-पौधो को भेजन देने, फसल को पकाने और तैयार करने में जुट जाता है. इसके साथ ही जमीन में जाते ही जीवामृत धरती के अंदर 10 से 15 फीट गहराई में जाकर समाधि की स्थिति में बैठे हुए देशी केंचुएं और दूसरे जीव जंतुओं को उपर की ओर खींचकर उन्हें एक्टिव कर देते हैं.