जहां सूख गई थीं उम्मीदें, वहां भानुमति ने उगाई हरियाली! जानें महिला किसान की प्रेरणादायक कहानी
आंध्र प्रदेश के अनंतपुर की बंजर और सूखाग्रस्त जमीन पर एक महिला किसान भानुमति ने ऐसा चमत्कार किया, जो पूरे रायलसीमा के लिए मिसाल बन गया. उनकी प्राकृतिक खेती से न सिर्फ पर्यावरण को राहत मिली, बल्कि महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने का रास्ता भी मिला.
आंध्र प्रदेश के अनंतपुर की बंजर जमीन, जहां किसान खेती छोड़ चुके थे, जहां बारिश भी गिनी-चुनी बूंदों में मिलती है, उसी जमीन पर भानुमति नाम की एक महिला किसान ने ऐसा चमत्कार कर दिखाया, जो अब पूरे रायलसीमा में मिसाल बन गया है. गृहिणी से किसान बनीं भानुमति ने गाय के गोबर, नीम और गुड़ से तैयार किया जैविक घोल और उसी से सूखी मिट्टी में हरियाली लौटा दी. इतना ही नहीं मजाक उड़ाने वालों को खेती से जवाब दिया और आज उनका खेत मॉडल फार्म बना है .
भानुमति की मेहनत की गूंज अब सिर्फ गांव में नहीं, बल्कि देश-दुनिया तक पहुंच चुकी है. नौ साल पहले बोया गया सपना अब 500 से ज्यादा किसानों की उम्मीद बन चुका है. ये सिर्फ एक महिला की कहानी नहीं, ये कहानी है उस जिद की है, जो सूखे में भी हरियाली की राह बना देती है.
देसी घोल से बंजर मिट्टी को बना दिया उपजाऊ
भानुमति ने जब खेती की शुरुआत की तो उनके पास सिर्फ एक एकड़ लीज की जमीन थी और जेब में बेहद कम पैसे. लेकिन उनका हौसला मजबूत था. उनके पास रासायनिक खाद खरीदने की क्षमता नहीं थी तो उन्होंने रास्ता बदला नहीं, तरीका बदला और प्राकृतिक खेत चुन ली. उन्होंने घर की गाय से मिला गोबर और गोमूत्र लिया, उसमें नीम और गुड़ मिलाकर एक देसी जैविक घोल तैयार किया. इसी घोल से उन्होंने उस बंजर मिट्टी में जान फूंक दी. धीरे-धीरे खेत में हरियाली लौटने लगी.आज यही सोच भानुमति को सैकड़ों किसानों की प्रेरणा बना चुकी है.
जिन्होंने उड़ाया था मजाक, आज वही कर रहे हैं तारीफ
मीडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, गांव वालों ने पहले भानुमति का खूब मजाक उड़ाया. बोले– बिना यूरिया और डीएपी के क्या उगाओगी? लेकिन भानुमति डरी नहीं, थकी नहीं. उन्होंने देसी तरीकों पर भरोसा बनाए रखा। धीरे-धीरे खेत में हरियाली लौटने लगी और वही खेत एक बहुफसली मॉडल बन गया, जिसमें सब्जियां, दलहन और फल तक लहलहाने लगे. आज वही लोग उनकी तारीफ करते नहीं थकते.
जहां पहले थी कर्ज की चिंता अब है बचत की सुकूनभरी सोच
भानुमति के अनुसार,पहले एक एकड़ खेत में खेती करने पर करीब 30,000 रुपये का खर्च आता था. लेकिन अब प्राकृतिक खेती से यह खर्च घटकर सिर्फ 5,000 रुपये रह गया है. वहीं, आमदनी की बात करें तो अब हर साल प्रति एकड़ 50 हजार से 60 हजार रुपये तक की कमाई हो रही है. पहले जहां कर्ज की चिंता रातों की नींद छीन लेती थी, अब बचत की योजना सुकून देने लगी है.
गांव की महिलाओं के लिए बनीं मिसाल
आज भानुमति आंध्र प्रदेश सरकार की सामुदायिक प्राकृतिक खेती योजना यानी APCNF की वरिष्ठ ट्रेनर हैं. वह महिला किसानों को जैविक खेती के तरीके सिखा रही हैं और उन्हें आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित कर रही हैं. अब तक वह 500 से ज्यादा किसानों को प्रशिक्षण दे चुकी हैं और गांव की महिलाओं के लिए एक मजबूत रोल मॉडल बन चुकी हैं.
जिस जमीन से निकली अब खुद की दो एकड़ की मालिक
एक वक्त था जब भानुमति को वो जमीन छोड़नी पड़ी जिसे उन्होंने अपने खून-पसीने से उपजाऊ बनाया था. तकलीफ हुई, पर हौसला नहीं टूटा. उन्होंने हार मानने के बजाय लड़ाई लड़ी और अब दो एकड़ जमीन की मालिक बन चुकी हैं. आज वो दूसरी महिलाओं को भी सिखा रही हैं कि जमीन पर हक होना सिर्फ जरूरी नहीं, हकदार बनने का पहला कदम है.
प्राकृतिक खेती से बदला माहौल महिलाएं बनीं आत्मनिर्भरता की मिसाल
भानुमति की प्राकृतिक खेती ने सिर्फ पर्यावरण को राहत नहीं दी, बल्कि समाज में भी सकारात्मक बदलाव लाया. उनके मॉडल से प्रेरित होकर अब अनंतपुर की कई महिलाएं खेती के जरिए आत्मनिर्भर बन रही हैं. रसायनों से दूर, देसी तरीकों पर आधारित यह खेती अब टिकाऊ आजीविका का मजबूत जरिया बन चुकी है. भानुमति ने यह साबित कर दिया कि महिलाएं सिर्फ घर नहीं, खेत और समाज दोनों को सवार सकती हैं. वो भी पूरी जिम्मेदारी और समझदारी के साथ.