SBI रिपोर्ट का दावा: मनरेगा की जगह VB-G RAM G से राज्यों को होगा 17,000 करोड़ का फायदा

यह रिपोर्ट ऐसे समय आई है, जब ग्रामीण रोजगार, मजदूरी और टिकाऊ आजीविका को लेकर लगातार सवाल उठ रहे हैं. 20 साल पुरानी मनरेगा की जगह लेने वाली VB-G RAM G योजना को सरकार एक नए ढांचे और नए सोच के साथ आगे बढ़ाना चाहती है.

नई दिल्ली | Published: 30 Dec, 2025 | 10:36 AM

VB-G RAM G: देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नई दिशा देने की तैयारी के बीच रोजगार से जुड़ी एक बड़ी तस्वीर सामने आई है. भारतीय स्टेट बैंक के रिसर्च विंग SBI Research की एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, नई योजना विकसित भारत गारंटी फॉर रोजगार और आजीविका मिशन (ग्रामीण) यानी VB-G RAM G लागू होने के बाद राज्यों को करीब 17,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त लाभ मिल सकता है. यह अनुमान पिछले सात वर्षों में चली MGNREGA की औसत फंडिंग से तुलना के आधार पर लगाया गया है.

यह रिपोर्ट ऐसे समय आई है, जब ग्रामीण रोजगार, मजदूरी और टिकाऊ आजीविका को लेकर लगातार सवाल उठ रहे हैं. 20 साल पुरानी मनरेगा की जगह लेने वाली VB-G RAM G योजना को सरकार एक नए ढांचे और नए सोच के साथ आगे बढ़ाना चाहती है.

बराबरी और असर दोनों पर जोर

SBI रिसर्च के अनुसार, VB-G RAM G के तहत केंद्र और राज्यों के बीच फंड का बंटवारा अब “नॉर्मेटिव असेसमेंट” यानी तय मानकों के आधार पर होगा. इसका मतलब यह है कि पैसा केवल आबादी या राजनीतिक दबाव के आधार पर नहीं, बल्कि वास्तविक जरूरत और काम के नतीजों को देखकर दिया जाएगा.

रिपोर्ट में बताया गया है कि इस नए ढांचे को दो मुख्य सिद्धांतों पर तैयार किया गया है. पहला है समानता, यानी जिन राज्यों में ग्रामीण आबादी ज्यादा है, मजदूरी पर निर्भरता अधिक है और प्रशासनिक दायरा बड़ा है, उन्हें पर्याप्त संसाधन मिलें. दूसरा है दक्षता, जिसमें यह देखा जाएगा कि कौन से राज्य मिले हुए फंड का सही इस्तेमाल कर रहे हैं, समय पर मजदूरी दे रहे हैं और टिकाऊ परिसंपत्तियां बना पा रहे हैं.

सात मानकों पर हुआ आकलन

बिजनेस स्टैंडर्ड की खबर के अनुसार, इस अध्ययन में सात अलग-अलग पैमानों को चुना गया है, जिन्हें समानता और दक्षता के बीच संतुलन बनाते हुए वजन दिया गया. इसके बाद एक काल्पनिक लेकिन व्यावहारिक परिदृश्य बनाकर देखा गया कि अगर यही फॉर्मूला पिछले वर्षों में लागू होता, तो राज्यों को कितना फायदा या नुकसान होता.

नतीजा यह निकला कि औसतन राज्यों को करीब 17,000 करोड़ रुपये का शुद्ध लाभ होता. लगभग सभी राज्यों को इस नए फॉर्मूले से फायदा होता दिखा, सिर्फ दो राज्यों में मामूली नुकसान का अनुमान लगाया गया है.

केंद्र पर बढ़ेगा बोझ, लेकिन इरादे साफ

रिपोर्ट के मुताबिक, अगर VB-G RAM G को पूरे देश में लागू किया जाता है, तो मजदूरी, सामग्री और प्रशासनिक खर्च मिलाकर सालाना कुल जरूरत करीब 1.51 लाख करोड़ रुपये होगी. इसमें से लगभग 95,692 करोड़ रुपये यानी करीब 63 फीसदी हिस्सा केंद्र सरकार का होगा.

यह राशि वित्त वर्ष 2025-26 में मनरेगा के लिए रखे गए 86,000 करोड़ रुपये के बजट से करीब 11 फीसदी ज्यादा है. इससे साफ होता है कि केंद्र सरकार इस नई योजना को लेकर गंभीर है और ग्रामीण रोजगार पर खर्च कम करने के बजाय उसे और मजबूत करना चाहती है.

रोजगार के दिन बढ़ने की उम्मीद

मनरेगा के तहत प्रति परिवार औसतन रोजगार के दिन धीरे-धीरे बढ़कर 50.4 तक पहुंचे हैं, जो पहले 45.9 थे. SBI की रिपोर्ट का मानना है कि VB-G RAM G में कामों का दायरा बढ़ने से रोजगार के औसत दिन और बढ़ सकते हैं.

साथ ही, राज्यों की सक्रिय भागीदारी और सख्त दंड प्रणाली से काम की मांग और उपलब्धता के बीच जो करीब 14 फीसदी का अंतर बना हुआ है, वह भी कम हो सकता है. रिपोर्ट के अनुसार, यह अंतर अब तक इसलिए बना रहा क्योंकि कई काम स्थानीय जरूरतों और बदलती आर्थिक प्राथमिकताओं से मेल नहीं खाते थे.

मजदूरी का पुराना दर्द, नए समाधान की उम्मीद

मनरेगा की सबसे बड़ी कमजोरी हमेशा मजदूरी रही है. समय पर भुगतान न होना और महंगाई के मुकाबले मजदूरी में धीमी बढ़ोतरी ने मांग और आपूर्ति के संतुलन को कमजोर किया. SBI रिसर्च का मानना है कि नई योजना में इस पहलू पर बेहतर काम हो सकता है और मजदूरों की आय में स्थिरता आ सकती है.

सवाल भी उठे, सुझाव भी आए

हालांकि, इस बदलाव को लेकर सभी की राय एक जैसी नहीं है. वैज्ञानिकों और शिक्षाविदों के एक समूह ने सरकार को खुले पत्र के जरिए सलाह दी है कि नई योजना लागू करने से पहले जमीनी स्तर पर और रिसर्च व परामर्श किए जाएं. उनका कहना है कि मनरेगा को खत्म करने के बजाय उसकी खामियों को दूर करना ज्यादा बेहतर विकल्प हो सकता है.

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