Mandi Rates: नई फसल की आवक से फिसले आलू के दाम, लागत और बाजार के बीच फंसे किसान

इस साल जिले में आलू की खेती का रकबा भी पहले से ज्यादा रहा. मेरी फसल मेरा ब्यौरा पोर्टल पर 38 हजार एकड़ से अधिक क्षेत्र में आलू की खेती दर्ज की गई है. पिछले साल इसी समय यह आंकड़ा काफी कम था. अब हालात यह हैं कि कई किसान लागत निकालने को लेकर भी चिंतित हो गए हैं.

नई दिल्ली | Published: 17 Dec, 2025 | 03:01 PM

Potato Prices: हर साल की तरह इस बार भी आलू की फसल से किसानों को अच्छी कमाई की उम्मीद थी. महीने की शुरुआत में जब मंडियों में ताजा आलू ऊंचे दामों पर बिकने लगा, तो किसानों के चेहरे खिल उठे. लेकिन यह खुशी ज्यादा दिनों तक नहीं टिक सकी. जैसे-जैसे मंडियों में नई फसल की आवक बढ़ी, वैसे-वैसे आलू के दाम तेजी से नीचे आने लगे. अब हालात यह हैं कि कई किसान लागत निकालने को लेकर भी चिंतित हो गए हैं.

मंडियों में बढ़ी आवक, दामों पर दबाव

द ट्रिब्यून की खबर के अनुसार, कुरुक्षेत्र जिले की प्रमुख मंडियों में इन दिनों आलू की आवक लगातार बढ़ रही है. मांग लगभग पहले जैसी ही बनी हुई है, लेकिन बाजार में आपूर्ति ज्यादा होने के कारण कीमतों पर दबाव साफ नजर आ रहा है. मौजूदा समय में मंडियों में आलू के दाम 500 से 900 रुपये प्रति क्विंटल के बीच रह गए हैं. कुछ हफ्ते पहले तक यही आलू 1300 से 2000 रुपये से ज्यादा भाव पर बिक रहा था. अचानक आई इस गिरावट ने किसानों की गणना बिगाड़ दी है.

बढ़ा रकबा, लेकिन कम कीमत बनी परेशानी

इस साल जिले में आलू की खेती का रकबा भी पहले से ज्यादा रहा. मेरी फसल मेरा ब्यौरा पोर्टल पर 38 हजार एकड़ से अधिक क्षेत्र में आलू की खेती दर्ज की गई है. पिछले साल इसी समय यह आंकड़ा काफी कम था. किसानों ने बेहतर उत्पादन और अच्छे दाम की उम्मीद में आलू की खेती की, लेकिन बाजार से मिले कमजोर भाव ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया.

किसानों की जुबानी दर्द

शाहाबाद अनाज मंडी में आलू बेचने पहुंचे किसान गौरव कुमार बताते हैं कि इस बार का सीजन निराशाजनक साबित हो रहा है. उनका कहना है कि लाल छिलके वाला आलू इस बार 800 रुपये के आसपास ही बिक पाया, जबकि पिछले साल यही किस्म 1800 से 1900 रुपये प्रति क्विंटल तक गई थी. सफेद आलू के दाम भी 600 रुपये के करीब रहे. ऊपर से इस साल पैदावार भी उम्मीद से कम हुई है, जिससे मुनाफे की गुंजाइश लगभग खत्म हो गई है.

भावांतर भरपाई योजना से उम्मीद

किसान संगठनों का कहना है कि बढ़ती लागत और अस्थिर बाजार के बीच आलू उत्पादक किसानों को सरकारी सहारे की सख्त जरूरत है. भारतीय किसान यूनियन से जुड़े किसान नेताओं का मानना है कि भावांतर भरपाई योजना के तहत सुरक्षित मूल्य बढ़ाया जाना चाहिए, ताकि किसानों को नुकसान से बचाया जा सके. साथ ही योजना का लाभ समय पर और पूरी फसल पर मिलना भी जरूरी है.

आगे क्या रहेगा बाजार का हाल

व्यापारियों के अनुसार मंडियों में आलू का स्टॉक अभी काफी है और मांग में कोई खास तेजी नहीं दिख रही. ऐसे में आने वाले दिनों में दाम और नीचे जा सकते हैं. जनवरी में जब पूरी तरह तैयार फसल की आवक बढ़ेगी, तब बाजार पर और दबाव पड़ने की आशंका है. हालांकि कुछ दिनों से आवक में हल्की कमी भी देखी जा रही है, जिससे किसानों को थोड़ी राहत की उम्मीद बनी हुई है.

बढ़ती खेती, घटती कमाई की चिंता

अधिकारियों का कहना है कि जिले में आलू की खेती इसलिए बढ़ी है क्योंकि कई किसानों ने इसे अतिरिक्त फसल के रूप में अपनाया. हालांकि मौजूदा हालात में सबसे जरूरी है कि किसान अपनी फसल का पंजीकरण सही समय पर कराएं, ताकि सरकारी योजनाओं का लाभ मिल सके. कुल मिलाकर, इस बार आलू की खेती ने किसानों को यह सिखाया है कि केवल उत्पादन बढ़ाना ही काफी नहीं, बल्कि बाजार और नीति दोनों का मजबूत सहारा भी जरूरी है.

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