पश्चिम बंगाल में आलू की खेती पर गहराया संकट, जानिए क्यों इस बार घट सकता है बोवाई क्षेत्र

आलू की खेती में किसान पैसे, मेहनत और समय सब कुछ लगाते हैं. लेकिन जब बाजार में सही कीमत नहीं मिलती, तो उनका भरोसा टूट जाता है. किसान ये सवाल कर रहे हैं कि कब तक वे घाटे का जोखिम उठाते रहेंगे?

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 25 Nov, 2025 | 08:15 AM

potato cultivation: पश्चिम बंगाल में हर साल आलू की खेती लाखों किसानों की रोजी-रोटी का सहारा रही है. लेकिन इस सीजन खेतों में पहले जैसी रौनक नहीं दिख रही. किसान बोवाई से पहले ही सोच में पड़ गए हैं कि जब पिछले साल मेहनत का सही दाम नहीं मिला, तो इस बार उतनी उम्मीद क्यों करें? वहीं कई जगहों पर प्राकृतिक आपदाओं ने हालात और बिगाड़ दिए हैं. ऐसे समय में किसान उम्मीद और निराशा के बीच खड़े दिखाई देते हैं.

बंपर फसल की कीमत किसानों ने चुकाई

बिजनेस लाइन की खबर के अनुसार, पिछले वर्ष राज्य ने लगभग 115 लाख टन आलू का उत्पादन किया, जो एक बड़ी उपलब्धि थी. लेकिन उत्पादन अधिक होने की वजह से बाजार में आलू के भाव धड़ाम से गिर गए. किसानों की उपज तो खूब हुई, पर कमाई न के बराबर रही. कोल्ड स्टोरेज तक आलू भर गए, लेकिन दुकानों और मंडियों में कीमत नहीं मिली. ऐसे हालात में अब किसान अपनी बोवाई का क्षेत्र घटाने पर मजबूर हो रहे हैं.

हुगली के खेतों में पानी, किसानों की उम्मीदें डूब गईं

सितंबर की भारी बारिश और बाढ़ ने दक्षिण बंगाल के कई जिलों में नुकसान पहुंचाया. खासकर हुगली जिला, जहां खेत आज भी पानी में डूबे पड़े हैं. हरिपाल के किसान प्रद्युत मैती बताते हैं कि इस बार वे अपनी जमीन के एक हिस्से में ही आलू बो पाए क्योंकि बाकी जमीन अभी तक ठीक नहीं हुई. इससे यह साफ है कि यहां खेती का क्षेत्र घटने के आसार ज्यादा हैं और कई किसान मौसम के भरोसे मजबूर होकर बैठे हैं.

उत्तर बंगाल बना किसानों के लिए नई आस

उत्तर बंगाल के जिले जैसे कूचबिहार, जलपाईगुड़ी और मालदा में आलू की खेती बढ़ती दिख रही है. यहां मिट्टी की स्थिति बेहतर है और किसान बाजार की अच्छी संभावनाओं को देखते हुए अधिक क्षेत्र में आलू लगा रहे हैं. राज्य के इस हिस्से ने आलू उत्पादन के बदलाव को संभालने की कोशिश की है और इससे किसानों को थोड़ा सहारा मिल रहा है.

किसान पूछ रहे हैं — मेहनत का सही दाम कब मिलेगा?

आलू की खेती में किसान पैसे, मेहनत और समय सब कुछ लगाते हैं. लेकिन जब बाजार में सही कीमत नहीं मिलती, तो उनका भरोसा टूट जाता है. किसान ये सवाल कर रहे हैं कि कब तक वे घाटे का जोखिम उठाते रहेंगे? क्या उनकी फसल की कोई सुरक्षा नहीं? मेहनत उन्हीं की है, पर फायदा अक्सर बिचौलियों और व्यापारियों को मिलता है. ऐसे में किसान खुद को असुरक्षित और असहाय महसूस कर रहे हैं.

सरकार और बाजार, दोनों को साथ आना होगा

आलू किसानों के लिए भंडारण सुविधा में सुधार, न्यूनतम लाभकारी मूल्य निर्धारण और बेहतर मार्केटिंग व्यवस्था बेहद जरूरी है. यदि सरकार और व्यापार जगत मिलकर किसानों को मजबूत समर्थन दें, तो फिर से खेतों में भरपूर आलू और किसानों के चेहरों पर मुस्कान लौट सकती है. क्योंकि यह फसल केवल खाद्य सुरक्षा ही नहीं, बल्कि लाखों परिवारों की आर्थिक नींव भी है.

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