आलू की इन किस्मों पर झुलसा रोग का नहीं होता है असर, उत्पादन भी बेहतर..जानें कब करें बुवाई

बिहार देश का तीसरा सबसे बड़ा आलू उत्पादक राज्य है. यहां पर आलू की खेती लगभग 3.20 लाख हेक्टेयर में होती है. हर साल राज्य में करीब 57.4 लाख टन आलू का उत्पादन होता है.

Kisan India
नोएडा | Updated On: 2 Sep, 2025 | 03:31 PM

बिहार देश का एक प्रमुख आलू उत्पादक राज्य है. अगले महीने यानी अक्टूबर से यहां के किसान आलू की बुवाई शुरू कर देंगे. लेकिन कई ऐसे किसान हैं, जो इस बार आलू की नई किस्मों की बुवाई करना चाहते हैं, ताकि बंपर पैदावार हो. पर उनके मन में नई किस्मों को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है. लेकिन अब इन किसानों को नई किस्मों को लेकर चिंता करने की जरूरत नहीं है. आज हम आलू की खास किस्मों के बारे में बात करने जा रहे हैं, जो बिहार की मिट्टी और जलवायु के अनुकूल हैं. अगर किसान इसकी खेती शुरू करते हैं, तो बंपर पैदावार होगी. खास बात यह है कि इन किस्मों में रोगों से लड़ने की क्षमता भी ज्यादा है और इनके ऊपर झुलसा रोग का असर बहुत कम होता है.

बिहार में आलू की बुवाई का सबसे अच्छा समय अक्टूबर के आखिरी हफ्ते से लेकर नवंबर के पहले हफ्ते तक माना जाता है. अगर किसान इस समय आलू बोते हैं, तो पौधों की ग्रोथ तेज होती है और पैदावार भी ज्यादा मिलती है. इस दौरान का मौसम आलू की खेती के लिए बिल्कुल अनुकूल होता है, जिससे फसल अच्छी तरह बढ़ती है और किसान को अच्छा उत्पादन मिलता है.

ये हैं आलू की बेहतरीन किस्में

एक्सपर्ट के मुताबिक, अगर किसान अक्टूबर के आखिरी हफ्ते से नवंबर के पहले हफ्ते के बीच आलू की बुवाई करते हैं, तो कीट और बीमारियों का खतरा कम होता है. इससे पैदावार भी ज्यादा होती है. हालांकि, बिहार के किसानों के लिए वैज्ञानिकों ने कुछ खास किस्मों की सिफारिश की है, जिसमें राजेंद्र आलू 01, कुफरी सिंधुरी, फुकरी चिप्सोना, कुफरी चंद्रमुखी और राजेंद्र आलू 03 शामिल हैं. अगर बात करें कुफरी सिंधुरी की, तो इसका रंग लाल होता है और यह किस्म प्रति हेक्टेयर 350 क्विंटल तक उत्पादन दे सकता है.

चंद्रमुखी किस्म की पैदावार

इसी तरह कुफरी चंद्रमुखी किस्म के आलू का कंद सफेद रंग का होता है और इसकी औसतन पैदावार 200 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है. वहीं, राजेंद्र आलू 01 किस्म का कंद लाल रंग का होता है और यह फसल 100 से 110 दिन में तैयार हो जाती है. इसकी सबसे खास बात यह है कि यह किस्म झुलसा रोग के प्रति प्रतिरोधी है, यानी इस पर झुलसा रोग का असर नहीं होता. इसके अलावा किसान क्षारीय मिट्टी में भी इसकी खेती कर सकते हैं. राजेंद्र 01 की औसतन उपज करीब 350 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है.

बिहार में आलू का रकबा

बता दें कि बिहार देश का तीसरा सबसे बड़ा आलू उत्पादक राज्य है. यहां पर आलू की खेती लगभग 3.20 लाख हेक्टेयर में होती है. हर साल राज्य में करीब 57.4 लाख टन आलू का उत्पादन होता है. बिहार, भारत के कुल आलू उत्पादन में अहम योगदान देता है और यह फसल राज्य की कृषि अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है.

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Published: 2 Sep, 2025 | 02:55 PM

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