आज के समय में किसानों के सामने सबसे बड़ी चुनौती बन गई है नीलगाय से होने वाला फसल नुकसान. उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में नीलगाय और लावारिस पशु खेतों में घुसकर फसल को नष्ट कर देते हैं. खासकर सब्जी, फल और उद्यानिकी फसलें इनसे सबसे ज्यादा प्रभावित होती हैं. नीलगायों को ‘गोवंश’ माना जाता है, इसलिए इनका वध कानूनन मना है. जंगल और झाड़ियों के खत्म होने की वजह से अब ये जानवर खेतों में ही रहने लगे हैं. गन्ना, अरहर जैसे ऊंचे फसलों में ये छिपकर बैठते हैं और मौका मिलते ही फसल को खा जाते हैं. इससे किसानों को हर साल भारी नुकसान उठाना पड़ता है.
देसी और सस्ता उपाय
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, बिहार के समस्तीपुर जिले में एक किसान द्वारा नीलगाय से फसल को बचाने का देसी और बेहद कारगर तरीका अपनाया गया है. इस विधि में सिर्फ दो सड़े हुए अंडों को लगभग 15 लीटर पानी में मिलाकर घोल तैयार किया जाता है. यह घोल 5 से 10 दिन तक सड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है ताकि उसमें तेज गंध उत्पन्न हो सके. फिर इस घोल को खेत की मेड़ों पर छिड़का जाता है. .नीलगाय इस दुर्गंध को सहन नहीं कर पाती और खेत में प्रवेश नहीं करती, जिससे फसल पूरी तरह सुरक्षित रहती है.
कैसे बनाएं यह देसी घोल
इस उपाय को अपनाने के लिए आपको चाहिए- दो सड़े हुए अंडे और लगभग 15 लीटर पानी. इन अंडों को पानी में अच्छे से मिलाकर एक बाल्टी या ड्रम में डाल दें और उसे 5 से 10 दिन तक ऐसे ही छोड़ दें ताकि उसमें तेज दुर्गंध पैदा हो जाए. इसके बाद हर 15 दिन में इस घोल को खेत की मेड़ों पर छिड़कें, खासतौर पर वहां से जहां से नीलगाय खेत में आती है. ध्यान रहे कि इस घोल को पौधों पर नहीं छिड़कना है क्योंकि इसका मकसद जानवरों को दूर भगाना है, फसल को नहीं. नीलगाय सख्त शाकाहारी होती है और इस प्रकार की बदबू उसे बहुत परेशान करती है. इसलिए जिस खेत में यह घोल छिड़का गया हो, वहां वह आना पसंद नहीं करती.
बंदरों से भी मिलेगी राहत, फसलों पर न करें छिड़काव
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, यह तरीका सिर्फ नीलगाय नहीं, बल्कि बंदरों को भगाने में भी उतना ही असरदार है. उनका मानना है कि यह एक प्राकृतिक रिपेलेंट है, जो जानवरों को दूर भगाता है. ध्यान देने वाली बात यह है कि इस घोल को फसलों पर नहीं छिड़कना चाहिए, वरना बदबू फसल में भी बैठ सकती है. यह घोल जितना पुराना होगा, उसका असर उतना ही ज्यादा होगा. नीलगाय भगाने की यह विधि सस्ती, सुलभ और प्राकृतिक है. आस-पास के कई किसान इस तरीके को अपनाकर अपनी फसलों की रक्षा कर रहे हैं. इसके साथ ही, वैज्ञानिक भी मानते हैं कि केला, टमाटर जैसे फलों को बचाने के लिए इस तरह के उपायों के साथ-साथ पॉलीथिन से ढकने जैसे उपाय भी कारगर साबित होते हैं.