क्लाइमेट चेंज से आलू की पैदावार 70 फीसदी घटी, तिलहन के रकबे में भारी गिरावट

रिपोर्ट में बताया गया है कि जलवायु परिवर्तन के चलते उत्तराखंड के कृषि क्षेत्र में बुरा असर देखा गया है. बीते एक दशक में उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों की खेती में बड़ा बदलाव आया है.

नोएडा | Updated On: 2 May, 2025 | 07:51 PM

जलवायु बदलावों का बुरा असर खेती पर दिख रहा है. ताजा रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड में आलू की पैदावार में 70 फीसदी गिरावट आई है. जबकि तिलहन की खेती 27 फीसदी घट गई है. इसके साथ ही गेहूं, चावल और बाजरा की फसल में भी गिरावट आने से चिंता बढ़ गई है. कृषि विशेषज्ञों ने क्लाइमेट चेंज के असर से मौसम में हो रहे बदलाव को इसके लिए जिम्मेदार बताया है.

एक दशक में खेती योग्य भूमि 27 फीसदी घटी

क्लाइमेट ट्रेंड्स की नई रिपोर्ट पहाड़ों में पानी की कमी और बढ़ती गर्मी के प्रभाव से हो रहे खेती में बदलाव के असर को दर्शाती है. रिपोर्ट में बताया गया है कि जलवायु परिवर्तन के चलते उत्तराखंड के कृषि क्षेत्र में बुरा असर देखा गया है. बीते एक दशक में उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों की खेती में बड़ा बदलाव आया है. खेती की कुल भूमि में 27.2 फीसदी की गिरावट आई है, और समग्र उपज 15.2 फीसदी घट गई है.

आलू पैदावार में 70 फीसदी की गिरावट

उतराखंड के पहाड़ी जिले अब पारंपरिक फसलों से हटकर जलवायु के अनुकूल फसलों की ओर बढ़ रहे हैं. गेहूं, धान और आलू जैसी मुख्य फसलों के रकबे और पैदावार में भारी गिरावट ने किसानों और विशेषज्ञों की चिंता बढ़ा दी है. ‘सब्ज़ियों का राजा’ कहलाने वाला आलू जलवायु परिवर्तन की मार सबसे ज्यादा झेल रहा है. बीते पांच सालों में इसकी पैदावार 70.82 फीसदी घटकर 2020-21 के 3.67 लाख मीट्रिक टन से 2023-24 में 1.07 लाख मीट्रिक टन रह गई है. आलू की खेती का रकबा भी 2020-21 में 26,867 हेक्टेयर से घटकर 2022-23 में 17,083 हेक्टेयर रह गया है.

कम बारिश से आलू पर बुरा असर – एक्सपर्ट

कृषि विज्ञान केंद्र उधम सिंह नगर के वैज्ञानिक डॉ. अनिल कुमार कहते हैं कि पहाड़ों में आलू की खेती बारिश पर निर्भर है और बारिश अब अनियमित होती जा रही है. पहले बर्फबारी होती थी, अब वह भी कम हो गई है. इससे आलू पर बुरा असर पड़ा है. लोक चेतना मंच के अध्यक्ष जोगेंद्र बिष्ट बताते हैं कि पहाड़ों में आलू की खेती पूरी तरह से बारिश पर निर्भर है और अब उत्तराखंड में बारिश के बारे पैटर्न में बहुत अनिश्चितता आ गयी है. इसके चलते खेती के लिए अब नमी की कमी हो रही है. ऊपर से तापमान बढ़ रहा है और वाष्पीकरण तेज हो गया है.

पानी की कमी और मिट्टी की गिरती गुणवत्ता

जोगेंद्र बिष्ट बताते हैं कि धान और गेहूं की खेती अब पानी की कमी और मिट्टी की गिरती गुणवत्ता की वजह से मुश्किल हो गई है. गेहूं, चावल और बाजरा की फसल में गिरावट दर्ज की गई है. एक्सपर्ट ने कहा कि उत्तराखंड के पहाड़ों में खाद्यान्न और तिलहन का रकबा बढ़ाने के लिए किसानों को पारंपरिक खेती पर फोकस करना होगा. राज्य सरकार भी जैविक और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दे रही है.

Published: 2 May, 2025 | 07:51 PM