भारत की कॉफी दुनिया में छाएगी, 2047 का लक्ष्य बनाएगा नया रिकॉर्ड
2047 तक, जब देश अपनी स्वतंत्रता के 100 वर्ष पूरे करेगा, बोर्ड ने कॉफी उत्पादन को 3.5 लाख टन से बढ़ाकर 7 लाख टन तक पहुंचाने की महत्वाकांक्षी योजना बनाई है. यह लक्ष्य सिर्फ उत्पादन बढ़ाने का नहीं, बल्कि भारत की कॉफी को वैश्विक मंच पर और मजबूत पहचान दिलाने का है.
भारत की कॉफी विश्वभर में अपनी सुगंध, स्वाद और गुणवत्ता के लिए जानी जाती है. अब इस पहचान को और मजबूत करने के लिए कॉफी बोर्ड ने एक बड़ा और दूरदर्शी लक्ष्य तय किया है. 2047 तक, जब देश अपनी स्वतंत्रता के 100 वर्ष पूरे करेगा, बोर्ड ने कॉफी उत्पादन को 3.5 लाख टन से बढ़ाकर 7 लाख टन तक पहुंचाने की महत्वाकांक्षी योजना बनाई है. यह लक्ष्य सिर्फ उत्पादन बढ़ाने का नहीं, बल्कि भारत की कॉफी को वैश्विक मंच पर और मजबूत पहचान दिलाने का है.
परंपरागत क्षेत्रों से बाहर खेती का विस्तार
बिजनेस लाइन की खबर के अनुसार, कॉफी बोर्ड के चेयरमैन एम. जे. दिनेश ने कर्नाटक प्लांटर्स एसोसिएशन की 67वीं वार्षिक बैठक में बताया कि उत्पादन बढ़ाने के लिए देश के कुछ नए क्षेत्रों को कॉफी खेती के लिए तैयार किया जा रहा है.
ओडिशा और पूर्वोत्तर राज्यों में करीब एक लाख हेक्टेयर अतिरिक्त भूमि को कॉफी क्षेत्र में लाने की योजना है. वर्तमान में भारत में लगभग 4.05 लाख हेक्टेयर में कॉफी की खेती होती है. नए क्षेत्रों में कॉफी बागानों की शुरुआत होने से देश के उत्पादन में बड़ा इजाफा होगा और स्थानीय लोगों को भी रोजगार के नए अवसर मिलेंगे.
रोबस्टा और नई किस्मों का विकास
कॉफी बोर्ड आधुनिक तकनीक का उपयोग कर उत्पादन बढ़ाने की दिशा में तेजी से काम कर रहा है. रोबस्टा कॉफी की ऊंची गुणवत्ता वाली कलम तैयार करने के लिए जैन इरिगेशन के साथ मिलकर टिश्यू कल्चर का बड़ा प्रोजेक्ट चल रहा है, जिसका लाभ किसानों को 2026-27 से मिलने लगेगा.
इसके साथ ही बालेहन्नूर स्थित सेंट्रल कॉफी रिसर्च इंस्टिट्यूट (CCRI) अगले महीने अपनी शताब्दी के मौके पर तीन नई कॉफी किस्में जारी करने जा रहा है. पिछले 100 वर्षों में CCRI ने 30 अरेबिका और 3 रोबस्टा किस्में विकसित की हैं. इनके पास 400 से अधिक जातीय संग्रह वाली दुनिया की बेहतरीन जर्मप्लाज्म लाइब्रेरीज में से एक है.
डिजिटल बदलाव
कॉफी बोर्ड ने आधुनिक तकनीक की ओर एक और कदम बढ़ाते हुए IndiaCoffee ऐप लॉन्च किया है. यह ऐप किसानों, निर्यातकों और खरीदारों को जोड़ने का काम कर रहा है.
यह यूरोपीय यूनियन के डीफॉरेस्टेशन रेगुलेशन जैसे मानकों के पालन में मदद करता है और कॉफी की ट्रेसबिलिटी सुनिश्चित करता है. इसके साथ ही बोर्ड एक नया प्रमाणन सिस्टम INDICOFS भी तैयार कर रहा है, जो भारतीय कॉफी को अंतरराष्ट्रीय बाजार में एक अलग पहचान देगा.
शोध, जलवायु और घरेलू बाजार पर जोर
बैठक में कई उद्योग विशेषज्ञों ने अपनी बातें रखीं. UPASI के अध्यक्ष अजय थिपैया ने जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने के लिए शोध और नई किस्मों के विकास पर जोर दिया. टाटा संस के निदेशक भास्कर भट्ट ने सुझाव दिया कि भारतीय किसानों को घरेलू बाजार की बढ़ती मांग पर ध्यान देना चाहिए, खासकर प्रीमियम और स्पेशलिटी कॉफी उत्पादों पर. भारत की युवा आबादी तेजी से नए स्वाद और उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादों की ओर आकर्षित हो रही है.
नीति सुधार की मांग
कर्नाटक प्लांटर्स एसोसिएशन के चेयरमैन ए. अरविंद राव ने राज्य सरकार से एक अलग प्लांटेशन निदेशालय स्थापित करने की मांग की. उन्होंने कहा कि कॉफी उद्योग को जलवायु, श्रम, बाजार में उतार-चढ़ाव और नियमों से जुड़े जटिल मुद्दों से निपटने के लिए विशेषज्ञ संस्था की जरूरत है.
ऐसा निदेशालय पुनर्रोपण, मशीनीकरण, सब्सिडी और वैल्यू एडिशन से जुड़ी नीतियों पर काम कर सकता है और विभिन्न सरकारी विभागों के बीच समन्वय स्थापित कर सकता है.