नीति आयोग की सलाह: MSP पर निर्भरता छोड़ें, बदलना होगा किसानों को खेती का पैटर्न
पिछले एक दशक के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि MSP वाली फसलों की वृद्धि दर बेहद धीमी रही है. इन फसलों में वृद्धि दर केवल 1.8 प्रतिशत है, जबकि जिन फसलों पर MSP नहीं मिलता, उनकी वृद्धि दर लगभग 4 प्रतिशत तक पहुंच गई है.
भारत की खेती आज नए मोड़ पर खड़ी है. लंबे समय तक किसान कुछ ही पारंपरिक फसलों पर निर्भर रहे हैं. धान, गेहूं, कपास या गन्ना जैसी फसलें, जिन्हें MSP यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य का सुरक्षा कवच मिला हुआ है. लेकिन बदलते समय के साथ बाजार की मांग, उपज में उतार-चढ़ाव और कीमतों की अनिश्चितता ने यह साबित कर दिया है कि सिर्फ MSP वाली फसलों पर टिके रहना अब पर्याप्त नहीं है. इसी संदर्भ में नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद ने किसानों को एक महत्वपूर्ण सुझाव दिया है—MSP के बाहर की फसलों को अपनाएं, ताकि खेती अधिक लाभदायक और भारत आत्मनिर्भर बन सके.
MSP वाली फसलें धीमी गति से बढ़ रही हैं
businessline की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले एक दशक के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि MSP वाली फसलों की वृद्धि दर बेहद धीमी रही है. इन फसलों में वृद्धि दर केवल 1.8 प्रतिशत है, जबकि जिन फसलों पर MSP नहीं मिलता, उनकी वृद्धि दर लगभग 4 प्रतिशत तक पहुंच गई है. यह अंतर बताता है कि बाजार की मांग और उपभोक्ताओं की पसंद अब बदल रही है.
भारत की कृषि वृद्धि पिछली एक दशक में औसतन 4.6 प्रतिशत रही, लेकिन देश की घरेलू मांग सिर्फ 2 प्रतिशत की दर से बढ़ी है. यह स्थिति बताती है कि हम कई बार जरूरत से ज्यादा उत्पादन कर रहे हैं, जिससे किसानों को उचित दाम नहीं मिल पाता.
बदलती बाजार मांग और नए अवसर
रमेश चंद का कहना है कि देश में एक नया उपभोक्ता वर्ग तेजी से उभर रहा है. यह वर्ग अधिक आय वाला है, और स्वास्थ्य, पोषण तथा विविधता वाले खाद्य पदार्थों पर ज्यादा खर्च करने को तैयार है. यह किसानों के लिए एक बड़ा अवसर है.
मिलेट्स जैसे पोषक अनाज, दालों की विविध किस्में, बागवानी उत्पाद, मसालों की उन्नत किस्में, फूलों की खेती और औषधीय पौधों की मांग लगातार बढ़ रही है. इन फसलों में MSP नहीं है, लेकिन बाजार में इनकी कीमतें और मुनाफ़ा कई पारंपरिक फसलों से कहीं अधिक मिलता है.
फसल से बाजार तक
दुनिया अब खेती को केवल खेती के रूप में नहीं देख रही, बल्कि फूड सिस्टम के रूप में समझने लगी है. इसका मतलब है कि उत्पादन से लेकर बाजार तक की हर प्रक्रिया—बीज, उर्वरक, सिंचाई, कटाई, प्रसंस्करण, पैकेजिंग और मार्केटिंग एक ही श्रृंखला का हिस्सा है.
रमेश चंद ने बताया कि अगर भारत के किसान इस वैल्यू चेन से जुड़ते हैं, तो उनकी आय कई गुना बढ़ सकती है. उदाहरण के तौर पर, सिर्फ गेहूं बेचने से कम दाम मिलता है, लेकिन गेहूं का आटा, दलिया या ब्रांडेड उत्पाद बनाकर बेचने से मूल्य कई गुना बढ़ जाता है. यही बात हर फसल पर लागू होती है.
तकनीक और नीतिगत बदलाव की जरूरत
आत्मनिर्भर भारत का लक्ष्य तभी पूरा होगा जब किसानों को तकनीक, आधुनिक मशीनें, डिजिटल जानकारी, वित्तीय सहायता और बाजार तक सीधी पहुंच मिले. नीति आयोग का कहना है कि सरकार और कृषि संस्थानों को किसानों की जरूरतों के अनुसार नीतियां बनानी चाहिए.
रमेश चंद के अनुसार, किसानों को नीति निर्माण के केंद्र में रखना अत्यंत जरूरी है. वही जानते हैं कि जमीन, मौसम और क्षेत्र के अनुसार कौन सी फसल उन्हें सबसे अधिक मुनाफा दे सकती है.
किसानों के लिए भविष्य का रास्ता
भारत में खेती का भविष्य सिर्फ MSP तक सीमित नहीं है. नए समय में किसानों को विविधतापूर्ण फसलें अपनानी होंगी. इससे न केवल जोखिम कम होगा, बल्कि आय भी बढ़ेगी.
देश में पौष्टिक अनाज, फल-सब्जियों, मसालों, औषधीय पौधों और फूलों की बाजार मांग बहुत तेजी से बढ़ रही है. इन फसलों को अपनाने से किसान बदलते बाजार में बेहतर कमाई कर सकते हैं और कृषि क्षेत्र को अधिक मजबूत बना सकते हैं.