खेती से जुड़े परिवार से निकला एक शख्स, जड़ें आज भी खेती से ही जुड़ी हैं. कॉरपोरेट जगत का रुतबा है, टॉप की पोजीशन है, लेकिन दिल में खेती से प्यार बसता है. रोशन लाल टामक – डीसीएम श्रीराम लिमिटेड के अधिशासी निदेशक और सीईओ यानी मुख्य कार्यकारी अधिकारी, हरियाणा के एक कृषि परिवार में पले-बढ़े टामक ने बिजनेस जगत में सफलता की ऊंचाइयों को छुआ.
‘किसान इंडिया’ की सीरीज ‘कृषि रत्न’ में इस बार के रत्न वही हैं. हरियाणा के कैथल में किसान परिवार में जन्मे टामक ने खेती को करीब से जाना और समझा. वे कहते हैं, ‘खेती का हर काम मैंने किया है, इसलिए इसे किसानों के नजरिए से बेहतर समझता हूं.’ सरकारी स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद, उन्होंने हरियाणा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की और फिर हिंदुस्तान लीवर में अपने करियर की शुरुआत की. 1986 में रोशन लाल टामक ने चीनी उद्योग में कदम रखा, और तब से उनका सफर जारी है. उनकी यात्रा मवाना शुगर से शुरू हुई, जहां उन्होंने छह साल तक काम किया. इसके बाद धामपुर शुगर में चार वर्षों तक कार्य किया. इसके बाद वे डीसीएम श्रीराम लिमिटेड से जुड़े, जहां उन्होंने फाउंडर जनरल मैनेजर के रूप में दस वर्षों तक अपनी भूमिका निभाई. फिर उन्होंने बलरामपुर चीनी मिल्स में बतौर चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर चार साल का कार्यकाल पूरा किया. इसके बाद वे ओलम इंटरनेशनल से जुड़े, जहां बिजनेस हेड और डायरेक्टर के रूप में सात साल बिताए. आखिरकार, वे फिर डीसीएम श्रीराम लिमिटेड लौटे, जहां पिछले नौ वर्षों से वे अधिशासी निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में कार्य कर रहे हैं.
उन्होंने केवल व्यावसायिक ऊंचाइयों को नहीं छुआ, बल्कि शिक्षा को भी निरंतर जारी रखा. आईआईएम अहमदाबाद और व्हार्टन स्कूल, यूएसए से मैनेजमेंट प्रोग्राम भी पूरे कर चुके हैं, जिससे उनकी नेतृत्व क्षमता और रणनीतिक सोच को और अधिक मजबूती मिली.
‘आईएएस बनने की चाहत, मगर चीनी उद्योग ने अपना बना लिया’
सवाल यह भी है कि आखिर चीनी के साथ ऐसा जुड़ाव कैसे हुआ. वह तो आईएएस बनने की ख्वाहिश रखते थे. वो ख्वाहिश पूरी नहीं हुई और पहली नौकरी मार्केटिंग से जुड़ी थी. टामक कहते हैं, ‘वहां टुअर बहुत होते थे. एक दिन मवाना शुगर आया, तो देखा लाइफ बड़ी सेटल्ड है यहां पर. सोचा कि नौ से पांच काम करेंगे, फिर आईएएस की तैयारी करेंगे. बढ़िया घर था, बढ़िया कॉलोनी थी, सब बढ़िया था. तो आईएएस की तैयारी भी बढ़िया हो जाएगी.’
लेकिन जिंदगी में वैसा कहां होता है, जैसा आपने सोचा हो. जिंदगी तो अपने साथ अपने हिसाब से एक कहानी लेकर आती है, जिस पर आपको चलना होता है. रोशन लाल टामक के साथ भी ऐसा ही हुआ. वह कहते हैं, ‘आया तो यह सोचकर था कि समय बहुत मिलेगा. लेकिन यहां तो सांस लेने की भी फुर्सत दूभर हो गई. सिविल सर्विसेज में तो नहीं जा पाया और यहीं का होकर रह गया. मैं सेक्टर में यंगेस्ट जनरल मैनेजर बना. 30 साल की उम्र में मुझे धामपुर शुगर ने जीएम बना दिया.’ आईएएस की तमन्ना रखने वाला शख्स ‘शुगर मैन’ बन गया.
‘अधूरी ख्वाहिश कचोटती है, लेकिन इस सेक्टर में काम करने का संतोष भी है’
टामक साहब को आज भी लगता है कि एक ख्वाहिश थी, जो पूरी नहीं हो पाई. इसमें कोई दो राय नहीं कि एक अधूरा सपना तो है. चाहता था कि सिविल सर्विसेज में आकर लोगों से जुड़ सकूं, नीतियां बनाने में योगदान दे सकूं. लेकिन अच्छी बात यह है कि शुगर बिजनेस की अपनी एक यूनीकनेस है. यह गन्ना किसानों से जुड़ता है—शुगर इंडस्ट्री और किसान एक-दूसरे के पूरक और पोषक हैं. उन्हें इस बात का सुकून है कि जहां वे जुड़े हैं, वह बिजनेस के लिए भी अच्छा है, किसानों के लिए भी और साथ में पर्यावरण के लिए भी. वह कहते हैं कि उन्हें संतोष है कि इंडस्ट्री फोरम सक्रिय होने से सेक्टर पर असर हो रहा है. वे सरकार के साथ मिलकर काम कर रहे हैं और सेक्टर के लिए नीतियां बनाने में योगदान दे रहे हैं. ऐसे में जो इच्छा थी, वह कुछ हद तक पूरी हो रही है.
‘किसानी के बारे में सामाजिक सोच बदलना जरूरी है’
किसानी से गहरा जुड़ाव रखने वाले से यह सवाल तो बनता ही है कि आज के दौर में भारतीय किसानों की सबसे बड़ी चुनौती क्या है. रोशन लाल टामक कहते हैं, ‘सबसे पहला मुद्दा है खेती की जमीन का लगातार छोटे हिस्सों में बंटते जाना. बहुत छोटी जोत पर खर्चे इतने अधिक होते हैं कि खेती महंगा सौदा साबित होती है. दूसरा बड़ा संकट है—मार्केट की अनिश्चितता. तीसरी और सबसे गंभीर चुनौती है—मौसम. जलवायु परिवर्तन के कारण यह संकट और बढ़ता जा रहा है, जो हमारी क्रॉपिंग साइकल और प्रोडक्टिविटी, दोनों पर प्रतिकूल असर डाल रहा है.’
इसके साथ ही, किसानी को लेकर सामाजिक सोच में बदलाव की जरूरत है. आज लोग अपने बच्चों को छोटी नौकरी तक दिलवाना चाहते हैं, लेकिन खेती से दूर रखना चाहते हैं. पहले कहा जाता था—”उत्तम खेती, मध्यम व्यापार, निकृष्ट चाकरी,” यानी कृषि सबसे सम्मानजनक पेशा माना जाता था और नौकरी को सबसे नीचे रखा जाता था. मगर आज स्थिति उलट गई है.
खेती को उचित महत्व मिलना चाहिए था, जो नहीं मिला। इसकी पोजीशनिंग बेहतर होनी चाहिए थी, जो नहीं की गई. इसे बदलने की सख्त जरूरत है.
बायो एनर्जी, तकनीक और ई-कॉमर्स बदलेंगे तकदीर
टामक का मानना है कि तकनीक की मदद से खेती में बदलाव लाने की जरूरत है, ताकि यह अधिक सुविधाजनक और संगठित बन सके. टेक-सेवी युवा इसे अपनाएं और ई-कॉमर्स का प्रभावी उपयोग हो, जिससे मार्केट से जुड़ी समस्याओं का समाधान किया जा सके. उन्होंने यह भी कहा कि शिक्षा में कृषि की अहमियत बढ़नी चाहिए और बायो एनर्जी हब्स विकसित किए जाएं.
खेती के अलावा, गन्ना किसानों से जुड़े मुद्दों पर भी ध्यान देना आवश्यक है. इथेनॉल उत्पादन की वजह से किसानों की स्थिति में बड़ा सुधार आया है. टामक कहते हैं, ‘गन्ना किसान अन्य कृषि क्षेत्रों की तुलना में बेहतर स्थिति में हैं. फैक्ट्रियों द्वारा कई सकारात्मक कदम उठाए गए हैं और सरकार की तरफ से भी आवश्यक कदम लगातार उठाए जा रहे हैं.’

Roshan Lal Tamak In sugarcane farm
उनके मुताबिक, हालांकि कुछ चुनौतियां अब भी बनी हुई हैं. मशीनीकरण की कमी और मजदूरों की उपलब्धता एक महत्वपूर्ण समस्या है. जलवायु परिवर्तन भी खेती के लिए बड़ी चुनौती बनता जा रही है, जिससे फसल चक्र और उत्पादकता पर असर पड़ता है.
एक और महत्वपूर्ण विषय उन्होंने उठाया—गन्ने की रिसर्च और वैरायटी डेवलपमेंट. टामक का कहना है, ‘बाकी फसलों की ब्रीडिंग में कॉरपोरेट का महत्वपूर्ण योगदान होता है, लेकिन गन्ने में रिसर्च सरकारी संस्थाओं तक सीमित है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि रिसर्च का स्तर उठाने की जरूरत है, ताकि बेहतर उपज वाली किस्में विकसित हो सकें.’
उन्होंने उदाहरण दिया कि कुछ समय पहले 238 वैरायटी आई थी, जिससे शुगर इंडस्ट्री में बड़ा बदलाव आया. इसी तरह, नई और उन्नत किस्मों पर निरंतर अनुसंधान आवश्यक है, जिससे किसानों को अधिक उत्पादन और बेहतर आय सुनिश्चित हो सके.