अश्वगंधा, जिसे भारतीय जिनसेंग भी कहा जाता है. यह एक प्राचीन औषधीय पौधा है जिसका उपयोग सदियों से आयुर्वेद में शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए किया जाता रहा ह. आजकल इस पौधे की जड़ें न केवल औषधीय दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि आर्थिक दृष्टिकोण से भी अत्यधिक लाभकारी साबित हो रही हैं. जब इसकी जड़ें बाजार में 30,000 से 40,000 रुपये प्रति क्विंटल तक बिकती हैं तो यह किसानों के लिए एक बेहतरीन आय का स्रोत बन सकती हैं. इस खबर में हम अश्वगंधा की खेती, देखभाल और कटाई की प्रक्रिया के बारे में विस्तार से जानेंगे, जो किसानों के लिए एक लाभकारी और आप्शनल विकल्प साबित हो सकती है.
बलुई दोमट या हल्की लाल मिट्टी का चयन
अश्वगंधा की खेती के लिए उपयुक्त भूमि, जलवायु और तैयारी का सही तरीका अपनाना बहुत आवश्यक है. इसके लिए, बलुई दोमट या हल्की लाल मिट्टी का चयन करना चाहिए, जिसका पीएच मान 7.5 से 8.0 के बीच हो. इसकी खेती के लिए अप्रैल-मई में भूमि तैयार करनी चाहिए र जुलाई-अगस्त में बुवाई करनी चाहिए. विशेष रूप से यह एक कम पानी की फसल है, जिससे किसानों को सिंचाई की समस्याएं कम होती हैं.
बुवाई करते समय 10 सेंटीमीटर का फासला
अश्वगंधा की खेती शुरू करने से पहले, भूमि को भुरभुरा करने के लिए 2-3 बार जुताई करना आवश्यक होता है. वर्षा से पहले, खेत को डिस्क या तवियों से जोतना चाहिए. इसके बाद, मिट्टी को पोषित करने के लिए 10-20 टन रूड़ी की खाद, 15 किलो यूरिया और 10 किलो फास्फोरस प्रति हेक्टेयर मिलाना चाहिए. बात करें इसकी बुवाई कि तो इसके लिए उपयुक्त समय जुलाई से अगस्त के बीच होता है. इसे बोते समय ध्यान देने की बात यह है कि बीज को 1-3 सेंटीमीटर गहराई में बोना चाहिए. इसके अलावा पंक्ति में 20-25 सेंटीमीटर और पौधों में 10 सेंटीमीटर का फासला रखना चाहिए. वहीं एक हेक्टेयर के लिए 10-12 किलो बीज चाहिए.
25 से 30 डिग्री तापमान
अश्वगंधा एक कम पानी वाली फसल है, इसलिए इसे अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है. यदि वर्षा समय पर नहीं होती तो 2-3 सिंचाई की जा सकती है. फसल की बढ़वार के दौरान समय-समय पर खरपतवार नियंत्रण करना महत्वपूर्ण है. इसके अलावा, कीटों और बीमारियों से बचाव के लिए नीम के तेल या गोमूत्र का छिड़काव किया जा सकता है. अश्वगंधा की खेती के लिए 25 से 30 डिग्री तापमान और 500 से 750 मिलीमीटर वर्षा की जरूरत होती है.
कटाई और भंडारण
अश्वगंधा की फसल लगभग 150-190 दिनों में पककर तैयार हो जाती है, जो जनवरी से मार्च के बीच होता है. जब पौधों की पत्तियां और फल पीले हो जाते हैं, तो यह कटाई के लिए तैयार होता है. कटाई करते समय ध्यान देने की बात यह है कि जड़ों को सावधानी से खोदकर निकालनें, ताकि वे कटने से बच सकें. इसके बाद जड़ों को पानी से धोकर धूप में सुखाया जाता है और हवादार स्थानों पर भंडारण किया जाता है. इन्हीं सूखी जड़ों की कीमत बाजार में 30,000 से 40,000 रुपये प्रति क्विंटल तक जाती है.