कम खर्च में तंबाकू से बनाएं असरदार कीटनाशक.. फसल रहेगी सुरक्षित, जानें विधि

तंबाकू के डंठल से बना जैविक कीटनाशक फसलों को कीटों से बचाने में मदद करता है. यह खेती की लागत में भी कमी लाने के साथ किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है.

नई दिल्ली | Updated On: 7 Jul, 2025 | 10:35 PM

तंबाकू का नाम सुनते ही दिमाग में बीड़ी, सिगरेट और गुटखे का खयाल आता है. तंबाकू पूरी दुनिया में हर साल लाखों लोगों के मौत का कारण बनता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि यही तंबाकू किसानों के लिए बेहद फायदेमंद हो सकता है? दरअसल, तंबाकू के डंठल से नैचुरल कीटनाशक बनाया जा सकता है, जो फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों की रोकथाम करने में सहायक हो सकता है. किसानों को फसल बचाने के लिए महंगे कीटनाशकों पर काफी पैसा खर्च करना पड़ता है. लेकिन तंबाकू के डंठल से बने घरेलू कीटनाशक का इस्तेमाल करने से न सिर्फ फसलों को कीटों से बचाया जा सकता है, बल्कि खेती की लागत में भी कमी लाई जा सकती है.

तंबाकू से कीटनाशक कैसे बनता है?

तंबाकू के डंठल से कीटनाशक बनाने की प्रक्रिया बेहद आसान है और इसे किसान खुद घर पर तैयार कर सकते हैं. इस कीटनाशक को बनाने के लिए निम्नलिखित तरीके का पालन करें:

  1. – तंबाकू के पत्तों की बजाय इसके डंठल का उपयोग किया जाता है.
  2. – डंठल को अच्छी तरह से मसलकर पाउडर बना लें.
  3. – 10 लीटर पानी में तंबाकू के डंठल का पाउडर डालकर आधे घंटे तक उबालें.
  4. – उबालने के बाद मिश्रण को ठंडा होने दें और फिर इसे छान लें.
  5. – इस प्रति लीटर घोल में 2 ग्राम कपड़े धोने वाला साबुन मिला लें.
  6. – इस मिश्रण को 80 से 100 लीटर पानी में मिला लें.
  7. – अब आपका घरेलू जैविक कीटनाशक तैयार हो गया है, जिसे फसलों पर छिड़ककर कीटों से बचाव किया जा सकता है.

किन कीटों के लिए कारगर है यह कीटनाशक?

सावधानियां और उपयोग की सीमा

हालांकि, यह कीटनाशक प्राकृतिक रूप से तैयार किया जाता है, फिर भी इसे सीमित मात्रा में इस्तेमाल करना जरूरी है. अधिक छिड़काव से फासले खराब हो सकती है. इसलिए, इसे अधिकतम दो बार ही छिड़कें. इसके अलावा, कीटनाशक के छिड़काव के समय इन बातों का रखें ध्यान.

किसानों के लिए फायदे

यह बाजार में मिलने वाले महंगे रासायनिक कीटनाशकों की तुलना में बेहद सस्ता पड़ता है. यह जैविक कीटनाशक होने के कारण मिट्टी की सेहत को नुकसान नहीं पहुंचाता. रासायनिक कीटनाशकों के मुकाबले यह पर्यावरण को कम नुकसान पहुंचाता है. साथ ही किसान इसे आसानी से खुद बना सकते हैं, जिससे उन्हें बाहरी उत्पादों पर निर्भर नहीं रहना पड़ता.

Published: 8 Jul, 2025 | 09:00 AM

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