गाय-भैंस अचानक बैठ जाए तो हल्के में न लें! मिल्क फीवर से ऐसे होती है मौत, जानिए बचाव और इलाज

मिल्क फीवर दुधारू गाय-भैंसों में होने वाली एक खतरनाक बीमारी है. अगर समय रहते इलाज न किया जाए तो जानवर की मृत्यु तक हो सकती है

नोएडा | Updated On: 2 Jul, 2025 | 05:40 PM

बरसात हो या सर्दी, अगर आपकी दुधारू गाय या भैंस अचानक बैठ जाए, गर्दन मोड़ ले और उठने में असमर्थ हो तो इसे आलस या थकान न समझें. यह किसी गंभीर बीमारी का संकेत हो सकता है. खासकर अगर वह हाल ही में बच्चा दी हो तो यह मिल्क फीवर हो सकता है. यह एक खतरनाक बीमारी है, जो समय पर इलाज न मिले तो पशु की जान भी ले सकती है.

शरीर को ठंडा कर देता है मिल्क फीवर

हिमाचल प्रदेश सरकार के पशुपालन विभाग के मुताबिक, मिल्क फीवर एक मेटाबोलिक बीमारी है जो आमतौर पर अधिक दूध देने वाली गायों और भैंसों में प्रसव (ब्यांत) के बाद देखी जाती है. इसके नाम में फीवर जरूर है, लेकिन इसमें बुखार नहीं आता. इसके होने से पशु का शरीर ठंडा हो जाता है, मांसपेशियों में कमजोरी आ जाती है, सांस लेने में दिक्कत होती है और जानवर धीरे-धीरे बेहोश होने लगता है. अगर समय रहते इलाज न किया जाए तो जानवर की मृत्यु तक हो सकती है.

किस कमी से होता है यह रोग?

यह रोग तब होता है जब बच्चा देने के बाद पशु के शरीर में कैल्शियम की अचानक कमी हो जाती है. क्योंकि ज्यादा दूध देने के लिए शरीर को अधिक कैल्शियम की जरूरत होती है. लेकिन अगर पशु को सही समय पर संतुलित आहार नहीं दिया जाए या ब्यांत के आखिरी दिनों में उसका कंसेन्ट्रेट यानी अच्छा चारा बंद कर दिया जाए तो शरीर में जमा कैल्शियम घटने लगता है. यही कमी मिल्क फीवर की वजह बनती है.

मिल्क फीवर के लक्षण

  • पशु अचानक बैठ जाता है और उठ नहीं पाता.
  • गर्दन मोड़कर पेट की ओर ले जाता है.
  • शरीर ठंडा महसूस होता है.
  • सांस लेने में परेशानी होती है.
  • आंखों में चमक कम हो जाती है.
  • मांसपेशियों में कंपन और कमजोरी दिखती है.

ध्यान दें कि अगर समय रहते पशुओं का इलाज न किया गया तो वह बेहोश हो सकता है और मर भी सकता है.

बचाव के आसान तरीके

  • गर्भवती गाय-भैंस को कैल्शियम, फास्फोरस और मिनरल मिक्चर समय पर देना चाहिए.
  • बच्चा देने के 10-15 दिन बाद तक पूरा दूध न दुहें. थोड़ा दूध थन में रहने दें ताकि शरीर को कैल्शियम बनाए रखने में मदद मिले.
  • ब्यांत से पहले पशु आहार में संतुलन बनाए रखें और अचानक कंसेन्ट्रेट बंद न करें.
  • पशु को धूप में रखने की कोशिश करें, ताकि विटामिन-डी के माध्यम से कैल्शियम अवशोषण बेहतर हो.

समय पर इंजेक्शन ही बचाता है जान

अगर गाय या भैंस को मिल्क फीवर हो जाए तो देर न करें, तुरंत पशु चिकित्सक से संपर्क करें. इलाज के लिए कैल्शियम बोरोग्लूकोनेट नाम की दवा दी जाती है. इसकी मात्रा 400 से 800 मिलीलीटर (अधिकतम 1000 ml) तक हो सकती है. इसके अलावा, दवा का आधा हिस्सा नस में (IV) और आधा त्वचा के नीचे (SC) दिया जाता है. ध्यान दें कि इंजेक्शन देने से पहले बोतल को शरीर के तापमान तक गर्म करना जरूरी है, ताकि असर जल्दी हो और जानवर को राहत मिले. समय पर इलाज से जानवर की जान बचाई जा सकती है.

थनैला रोग भी है बड़ा खतरा

मिल्क फीवर के साथ-साथ थनैला (Mastitis) भी एक खतरनाक रोग है जो दूध देने वाले पशुओं को प्रभावित करता है. इसमें थन में सूजन, दर्द और सख्ती आ जाती है. इसके अलावा, दूध पतला, बदबूदार या खून मिला हो सकता है.

पशुओ को थनैला रोग से ऐसे बचाएं

  • दूध निकालने से पहले और बाद में थनों को एंटीसेप्टिक से धोएं.
  • बर्तन और दूध निकालने की जगह साफ-सुथरी रखें.
  • जल्दबाजी में दूध न निकालें, पूरी सावधानी से काम लें.
  • कैल्शियम, विटामिन-ए, ई और जिंक वाले मिनरल मिक्चर पशु को जरूर दें.
Published: 2 Jul, 2025 | 06:40 PM