किसानों की बेबीकॉर्न से हो रही खूब कमाई, जान लें खेती का तरीका और बेस्ट किस्में

बेबीकॉर्न एक छोटा और कोमल भुट्टा है जो मक्के से मिलता है और इसका स्वाद मीठा और आकर्षक होता है. इसकी मांग तेजी से बढ़ रही है और यह किसानों के लिए एक मुनाफेदार विकल्प बनकर उभरी है, खासकर होटल, फूड प्रोसेसिंग कंपनियों और विदेशी बाजारों में.

नोएडा | Updated On: 5 May, 2025 | 12:22 PM

आज के समय में खेती सिर्फ गेहूं, धान और गन्ने तक सीमित नहीं रह गई है. किसान अब नए विकल्पों की तरफ बढ़ रहे हैं, जो कम समय में तैयार होकर अच्छा मुनाफा दे सकें. ऐसे में बेबीकॉर्न एक नई विकल्प बनकर उभर रही हैं. यह मक्के का एक छोटा और कोमल भुट्टा होता है, जिसे बहुत शुरुआती अवस्था में तोड़ा जाता है, जब उसमें दाने नहीं बने होते हैं. इसका स्वाद मीठा होता है और यह देखने में भी आकर्षक होता है. खास बात यह है कि पोषण के मामले में भी यह फूलगोभी, पत्तागोभी और टमाटर जैसी सब्जियों के बराबर होता है. यही कारण है कि भारत ही नहीं, विदेशों में भी इसकी मांग तेजी से बढ़ रही है.

बेबीकॉर्न की कहां-कहां होती है खेती

बेबीकॉर्न की शुरुआत दक्षिण-पूर्व एशिया से मानी जाती है. भारत में इसकी खेती अब बड़े स्तर पर की जा रही है, खासकर कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में. यहां की जलवायु और जमीन इसके लिए अनुकूल पाई गई है. धीरे-धीरे भारत बेबी कॉर्न का एक बड़ा निर्यातक बन गया है और इसकी आपूर्ति मिडिल ईस्ट, यूरोप और अमेरिका जैसे बाजारों में भी होने लगी है. साथ ही, घरेलू बाजार में भी होटल, रेस्टोरेंट और प्रोसेसिंग कंपनियों की मांग भी इसे किसानों के लिए मुनाफेडर बना रही है.

दो पद्धति से की जाती है खेती

बेबीकॉर्न की खेती का तरीका स्वीट कॉर्न से मिलता-जुलता है. इसके खेती के लिए किसान दो तरीके अपनाते हैं. एक सामान्य पद्धति जिसमें प्रति हेक्टेयर 58,000 पौधे लगाए जाते हैं और मुख्य भुट्टा अनाज के लिए छोड़कर बाकी को बेबी कॉर्न के रूप में निकाला जाता है. दूसरा तरीका हाई डेंसिटी वाला होता है जिसमें 1,75,000 पौधे प्रति हेक्टेयर लगाए जाते हैं और पूरा उत्पादन बेबी कॉर्न पर केंद्रित होता है. इससे 4.65 से 10.60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक छिलके सहित भुट्टे प्राप्त होते हैं.

भारत में बेबीकॉर्न की किस्में

बेबी कॉर्न के लिए बीज की मात्रा 20-25 किलो प्रति हेक्टेयर होती है. वहीं भारत में विशेष रूप से बेबी कॉर्न की कई एक किस्म तो HIM 123, VL-42, Him 129, Prakash, PEHM-1 & 2 जैसी जल्दी तैयार होने वाली और अधिक फूल देने वाली किस्में भी पाई गई हैं. इन किस्मों की खासियत होती है कम कद और एकरूपता से फूल आना, जिससे एकसाथ कटाई आसान होती है. Ganga 9, HIM 128, Vivek Hybrid-9 जैसे कई हाइब्रिड किस्मों के भी अच्छे नतीजे देखने को मिल रहे है.

फसल में कितनी खाद डालें

अच्छे उत्पादन के लिए नाइट्रोजन 150-200 किग्रा/हेक्टेयर को तीन हिस्सों में बांटकर देना चाहिए, जबकि फास्फोरस और पोटाश को बेसल डोज के रूप में उपयोग किया जाता है. इस संतुलन से पौधे स्वस्थ रहते हैं और भुट्टों की गुणवत्ता बेहतर होती है. इसके साथ ही बेबी कॉर्न की फसल में स्टॉक बोरर नामक कीट सबसे बड़ा खतरा रहता है. इससे बचाव के लिए एंडोसल्फान जैसे कीटनाशकों का सही समय पर छिड़काव जरूरी होता है. साथ ही नियमित निगरानी से नुकसान को समय पर रोका जा सकता है.

कटाई और बिक्री की तैयारी कैसे करें

बेबी कॉर्न को बुआई के 45-50 दिन बाद, जब उसके रेशे (सिल्क) 1-2 सेमी लंबे हो जाएं, उसी समय तोड़ना चाहिए. भुट्टे का आकार 4.5-10 सेमी लंबा और 7-17 मिमी व्यास का होना चाहिए. अच्छी गुणवत्ता के भुट्टे पीले रंग के और सीधी कतारों में दानों वाले होते हैं. बेबी कॉर्न बढ़ती मांग के कारण होटल, फूड प्रोसेसिंग कंपनियां, और विदेशी बाजार इसकी सबसे बड़ी ग्राहक हैं. इसका मतलब है कि यह फसल किसानों को न केवल कम समय में तैयार होने वाला विकल्प देती है, बल्कि मुनाफे के अच्छे मौके भी देती है.

Published: 5 May, 2025 | 12:22 PM