डायबिटीज को कंट्रोल करने में मदद करती है काली गाजर, खेती से 400 क्विंटल तक मिलेगी पैदावार
काली गाजर केवल किसानों के लिए ही फायदेमंद नहीं है, बल्कि इसमें मौजूद औषधीय गुण इसे सेहत के लिए भी काफी फायदेमंद बनाते हैं. इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट्स इसे दिल की बीमारी और हाई ब्लड शुगर को कंट्रोल करने में मदद करते हैं.
रबी सीजन की शुरुआत जल्दी ही होने वाली है. ऐसे में किसानों के सामने सबसे बड़ा सवाल होगा कि वे अपने खेत के लिए कौन सी फसलों का चुनाव करें, जिनसे उन्हें पैदावार भी अच्छी मिले और उनकी कमाई भी अच्छी हो. वैसे रबी सीजन के लिए किसान बहुत सी फसलों का चुनाव कर सकते हैं, जिनकी खेती से उन्हें मुनाफा होगा. इन फसलों में सब्जियां भी शामिल हैं. बात करें सब्जियों की तो किसान इस रबी सीजन काली गाजर की खेती कर सकते हैं. अपने औषधीय गुणों के कारण बाजार में भी काली गाजर की मांग रहती है जिसके चलते भारत में भी अब किसान इसकी खेती बड़ें पैमाने पर करने लगे हैं. बता दें कि, अगर काली गाजरी की फसल सही से और उन्नत तरीकों से देखभाल की जाए, तो इसकी खेती से किसानों को अच्छी पैदावार मिल सकती है.
ऐसे करें खेत की तैयारी
ऐसे जो किसान रबी सीजन में काली गाजर की खेती करने का मन बना रहे हैं, उनके लिए बेहद जरूरी है कि वे इसकी बुवाई से पहले खेत की तैयारी अच्छे से कर लें. काली गाजर की खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली दोमट या बलुई दोमट मिट्टी सही मानी जाती है, जिसका pH मान 6 से 7 के बीच हो. बता दें कि, काली गाजर की खेती के लिए 15 डिग्री सेल्सियस से 25 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान सही होता है. मिट्टी की जांच के बाद खेत की अच्छे से 2 से 3 बार गहरी जुताई कर लें, ताकि खेत की मिट्टी भुरभुरी हो सके और खरपतवार नष्ट हो सकें. इसके बाद पाटा या रोटावेटर की मदद से खेत तो समतल कर लें, ताकि खेती में किसी भी तरह से जलभराव ने हो. जलभराव की स्थिति में फसल की जड़ें सड़ने लगेंगी.
बीज बुवाई का सही तरीका
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, काली गाजर की प्रति हेक्टेयर फसल के लिए करीब 4 से 5 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है. इसके बीजों की बुवाई सीधी-सीधी कतार में करें. ध्यान रहे कि कतार से कतार की दूरी 30 सेमी और कतारों में लगाने वाले पौधों या बीजों की दूरी 5 से 7 सेमी के बीच होनी चाहिए. मिट्टी में बीजों को 1.5 से 2 सेमी की गहराई में डालें. फसल की अच्छी ग्रोथ के लिए बेहद जरूरी है कि आप फसल की सिंचाई का ध्यान रखें. बता दें कि काली गाजर की फसल को पहली सिंचाई बुवाई के तुरंत बाद देनी चाहिए. इसके बाद हर 7 से 10 दिन के अंतराल पर हल्की सिंचाई करें.
पैदावार और कटाई का समय
बात करें गाजर की फसल की कटाई की तो ये बुवाई के करीब 90 से 110 दिन बाद पककर कटाई के लिए तैयार हो जाती है. काली गाजर की जड़ें मोटी, गहरी काली और अच्छी लंबाई की होती हैं. बात करें इससे होने वाली पैदावार की तो किसान इसकी प्रति हेक्टेयर फसल से औसतन करीब 400 क्विंटल तक पैदावार कर सकते हैं. फसल के बढ़ने के दौरान किसानों को ध्यान रखना होगा कि खेत में पर्याप्त और सही मात्रा में खाद डाली जाए, ताकि फसल की ग्रोथ अच्छी हो. काली गाजर के खेती के लिए मिट्टी में बीज बुवाई से पहले 15 से 20 टन सड़ी हुई गोबर की खाद जरूर मिलाएं.
औषधीय गुणों से भरपूर
काली गाजर केवल किसानों के लिए ही फायदेमंद नहीं है, बल्कि इसमें मौजूद औषधीय गुण इसे सेहत के लिए भी काफी फायदेमंद बनाते हैं. इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट्स इसे दिल की बीमारी और हाई ब्लड शुगर को कंट्रोल करने में मदद करते हैं. इसके अलावा इसका इस्तेमाल नेचुरल फूड कलर बनाने में किया जाता है. साथ ही जैम, जूस, सिरका आदि को बनाने में भी किया जाता है.