किसानों की कमाई बढ़ा रही गाजर की नई किस्म, जान लें खेती की सही विधि

इंपरेटर गाजर एक खास किस्म की गाजर है जो अपने गहरे नारंगी रंग, लंबाई और स्टोरेज क्षमता के लिए जानी जाती है. इसकी खेती किसानों के लिए फायदेमंद हो सकती है क्योंकि यह बाजार में अच्छी कीमत दिला सकती है और पोषण से भरपूर होती है.

Kisan India
नोएडा | Published: 6 May, 2025 | 03:45 PM

आज के दौर में किसानों को ऐसे फसलों की जरूरत है जो बाजार में अच्छी कीमत दिलाएं, लंबे समय तक टिकें और पोषण से भरपूर हों. इसी कड़ी में गाजर की एक खास किस्म जो इंपेरेटर गाजर के नाम से जाना जाता है. गाजर की इस वैरायटी की खेती किसानों के लिए काफी फायदेमंद साबित हो रही है. आमतौर पर बाजार में मिलने वाली ‘बेबी गाजर’ या सामान्य लंबी गाजरें इसी की पैदावार मानी जाती हैं. इसकी खासियत सिर्फ इसका रंग या साइज नहीं, बल्कि इसकी क्वालिटी और ज्यादा दिनों तक शेल्फ लाइफ भी है.

क्या है इंपरेटर गाजर?

गाजर की किस्म है इंपरेटर गाजर, यह  देखने में गहरे नारंगी रंग की, 6-7 इंच लंबी और सामान्य गाजर से मोटी होती है. हालांकि इसका स्वाद थोड़ा कम मीठा होता है. यही वजह है कि ये गाजर जल्दी खराब नहीं होती और स्टोरेज में ज्यादा समय तक चलती है. यह गाजर नॉर्थ अमेरिका में सबसे ज्यादा बेची जाने वाली गाजर की किस्म है. भारत में इम्पेरेटर गाजर की खेती कई राज्यों में की जाती है, खासकर हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक. ये राज्य गाजर उत्पादन में सबसे आगे हैं और विभिन्न प्रकार की गाजर की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और मिट्टी की स्थिति प्रदान करते हैं

गाजर की अन्य किस्में

इंपरेटर गाजर सबसे पहले 1928 में नांतेस और चानतेने नामक गाजर की किस्मों को मिलाकर तैयार की गई थी. समय के साथ इसकी कई नई किस्में तैयार हुईं जैसे अपाचे, ब्लेज, क्रूसेडर, इम्परेटर 58, स्वीटनेस, ऑरलैंडो गोल्ड आदि. इनमें कुछ हाइब्रिड हैं और कुछ जैसे इम्परेटर 58 हेरलूम (पुरानी परंपरागत किस्में). ऑरलैंडो गोल्ड नामक एक किस्म में तो सामान्य गाजर से 30 प्रतिशत ज्यादा बीटा-कैरोटीन पाया जाता है.

इंपरेटर गाजर की खेती का तरीका

इंपरेटर गाजर की अच्छी खेती के लिए पूरी धूप और ढीली मिट्टी की जरूरत होती है ताकि गाजर की जड़ें ठीक से बन सकें. भारी मिट्टी हो तो उसमें खाद या कंपोस्ट मिलाकर हल्का कर देना चाहिए. गाजर के बीजों को वसंत में एक फुट की दूरी पर पंक्तियों में बोएं और हल्की मिट्टी से ढक दें. बीजों के ऊपर की मिट्टी को हल्के हाथ से दबाएं और हल्का पानी दें.

फसल के लिए नमी जरूरी

जब पौधे करीब 3 इंच के हो जाएं तो उन्हें 3-3 इंच की दूरी पर लगा दें. खेत को निरंतर नमी देते रहें और खरपतवार हटाते रहें ताकि पौधों को पूरी पोषण मिल सके. लगभग छह हफ्ते बाद हल्की नाइट्रोजन युक्त खाद डालें. जब गाजर की जड़ें ऊपर से करीब डेढ़ इंच चौड़ी दिखने लगें, तब उन्हें निकालने का समय आ जाता है. ध्यान रखें कि इन्हें ज्यादा पकने न दें, वरना स्वाद में कसैलापन आ सकता है.

कटाई और स्टोरेज

गाजर की कटाई से पहले मिट्टी को हल्का भिगो देना चाहिए ताकि उखाड़ना आसान हो. कटाई के बाद गाजर की पत्तियों को करीब आधा इंच तक काट दें. फिर इन्हें गीली रेत या बुरादे में परतों में स्टोर करें. अगर मौसम ठंडा है तो इन्हें खेत में भी छोड़ सकते हैं, बशर्ते ऊपर मोटी परत में घास या पुआल की मल्च डाल दी जाए.

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