PAU ने मक्के तीन नई किस्में पेश कीं, रोगों से लड़ने और ज्यादा उपज देने में सक्षम

पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी ने मक्का की तीन नई किस्में विकसित की हैं जो अधिक उपज और रोग प्रतिरोधक क्षमता के साथ किसानों के लिए एक नया अवसर प्रदान करती हैं. ये किस्में देश के विभिन्न जलवायु क्षेत्रों में अच्छी तरह अनुकूलित की गई हैं और किसानों को अधिक मुनाफा दिलाने में मदद कर सकती हैं.

नोएडा | Updated On: 6 May, 2025 | 03:36 PM

भारत में मक्का की खेती धीरे-धीरे नकदी फसल के रूप में लोकप्रिय होती जा रही है. खासतौर पर पशु चारे, स्टार्च उद्योग, खाद्य प्रसंस्करण और अब बेबी कॉर्न की मांग में तेजी से वृद्धि हो रही है. इस दिशा में पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी (PAU) ने, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के तहत तीन नई मक्का की किस्में विकसित की गई है. जिनमें PMH 18, PMH 19 और पंजाब बेबी कॉर्न 3 शामिल है. इन किस्मों को मंजूरी ICAR की वैरायटल आइडेंटिफिकेशन कमेटी (VIC) के माध्यम से दी गई है.

छोटे पैकेट में बड़ा धमाका पंजाब बेबी कॉर्न 3

सबसे पहले बात करें पंजाब बेबी कॉर्न 3 (JH 32484) की, तो इस किस्म की खेती के लिए जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड के पहाड़ी इलाके, पूर्वोत्तर राज्य, बिहार, झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, पूर्वी उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य शामिल हैं. यह किस्म लगभग 36.69 प्रतिशत से अधिक बेबी कॉर्न उत्पादन में सक्षम है, जो मौजूदा किस्मों के मुकाबले कई अधिक मानी जा रही है. इस किस्म की खेती किसानों के लिए बेहद फायदेमंद साबित हो सकती है.

खरीफ सीजन के लिए बेस्ट PMH 18

PMH 18 (JH 20088) एक मध्यम अवधि में पकने वाली किस्म है, जिसे खरीफ मौसम के लिए तैयार किया गया है. यह किस्म की खेती मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात और राजस्थान जैसे राज्यों के किसानों के लिए बेस्ट मानी जा रही है. इस किस्म ने मौजूदा किस्मों BIO 9544, CMH08-292 और LG 34.05 की तुलना में अधिक उपज होती है. इसकी औसत उपज 8,068 किलो प्रति हेक्टेयर तक होती है. इसका मतलब यह है कि किसान कम समय में ज्यादा उत्पादन और अच्छा मुनाफा कमा सकते है.

स्प्रिंग सीजन के लिए बेस्ट PMH 19

मक्के की इस किस्म PMH 19 (JH 18056) को स्प्रिंग सीजन के लिए विकसित किया गया है. यह किस्म उत्तराखंड के मैदानी हिस्से, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों के लिए उपयुक्त मानी गई है. इस किस्म की औसत उपज 10,441 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है, जो DHM 117 से 17.1 प्रतिशत और BIO 9544 से 6.4 प्रतिशत अधिक है. यह किस्म भी मध्यम अवधि में पकने वाली है और किसानों को कम समय में अच्छी उपज देने की क्षमता रखती है.

किसानों को मिलेंगे ये फायदे

इन नई किस्मों की सबसे बड़ी खासियत यह है कि ये मौजूदा किस्मों से अधिक उपज देती हैं और देश के विभिन्न agro-climatic जोन में अच्छी तरह अनुकूलित की गई हैं. इससे किसानों को सिर्फ अधिक उत्पादन ही नहीं, बल्कि अधिक मुनाफा भी मिल सकेगा. इसके अलावा, इन किस्मों में रोग प्रतिरोधक क्षमता और विपरीत मौसम सहन करने की ताकत भी बेहतर बताई जा रही है, जो बदलते मौसम और जलवायु संकट के दौर में किसानों के लिए बेहद उपयोगी साबित हो सकती हैं.

Published: 6 May, 2025 | 03:36 PM